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________________ अध्याय मित विधान नहीं तब उससे क्ति प्रत्ययका भी संभव होनेसे लब्धि शब्द भी शुद्ध ही है । तथा-वर्णानुपलब्धौ वा तदर्थगतेः' इत्यादि स्थलोंपर व्याकरणशास्त्रमें लब्धि शब्दका उपयोग भी किया गया है। % यदि लब्धि शब्द अशुद्ध होता तो उपर्युक्त स्थलपर लब्धि शब्दका प्रयोग नहीं किया जाता । अथवा स्त्रियां क्तिः। २-३-८० । कर्तासे रहित भावलकारमें वर्तमान धातुसे सीलिंगमें कि प्रत्यय होता हूँ है। तथा लभादिभ्यश्च । २-३-८१ । लभ आदि धातुओंसे भी उपर्युक्तं अवस्थामें क्ति प्रत्यय होता है। । ये भी जैनेंद्र व्याकरणके ही सूत्र हैं इसलिए डुलभष् धातुसे क्ति प्रत्ययका विधान अयुक्त न होनेसे लब्धि । शन्द कभी असाधु नहीं कहा जा सकता। 'लभादिभ्यश्च' यहांपर लभ आदि धातुओंका ग्रहण इच्छा नुकूल है । इसरीतिसे सूत्रमें स्थित लब्धि शब्दके अशुद्ध न होनेपर लब्धिका लाभ अर्थ निर्दोष है। १ वार्तिककार लब्धि शब्दका खुलासा अर्थ वतलाते हैं इंद्रियनिर्वृत्तिहेतुः क्षयोपशमविशेषो लन्धिः॥१॥ जिसके बलसे आत्मा द्रव्येद्रियकी रचनामें प्रवृत्त हो ऐसे ज्ञानावरण कर्मके विशेषक्षयोपशमका नाम हूँ लब्धि है। अर्थात् द्रव्येद्रियकी रचनाका कारण आत्माका जो ज्ञानावरण कर्मका विशेषक्षयोपशमरूप हैं परिणाम है उसका नाम लब्धि है। तन्निमित्तः परिणामविशेष उपयोगः॥२॥ ज्ञानावरण कर्मके उस विशिष्ट क्षयोपशमसे जायमान जो आत्माका परिणाम विशेष है उसका नाम उपयोग है । इसप्रकार लब्धि और उपयोग दोनों स्वरूप भावेंद्रिय है। यदि यहाँपर यहशंका की जाय कि उपयोगस्य फलत्वादिद्रियव्यपदेशानुपपत्तिरिति चेन्न कारणधर्मस्य कार्यानुवृत्तेः ॥३॥
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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