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भर जानेवाला है वह जल हो, इत्यादिरूपसे पृथिवी आदिका व्युत्पत्ति सिद्ध अर्थ प्रथन आदि क्रियाओं से उपलक्षित है परंतु उस अर्थकी यहां अविवक्षा है किंतु रूढि सिद्ध जो उनका अर्थ है उसीका यहां ग्रहण है। आगममें पृथिवी आदिमेंसे प्रत्येकके चार चार भेद माने हैं और वे इस प्रकार हैं-- .
पृथिवी पृथिवीकाय पृथिवीकायिक और पृथिवी जीव ये चार भेद पृथिवीके हैं। उनमें अचेतन | स्वभावसिद्ध परिणामसे रचित और कठिनता आदि गुणस्वरूप पृथिवी कही जाती है। अचेतन होनेसे | इसके पृथिवीकायिक नाम कर्मका उदय नहीं हो सकता इसलिये यह अपनी प्रथन-विस्तार रूप क्रियासे
| ही उपलक्षित है। अथवा पृथिवी शब्दका संबंध आगेके तीन भेदोंके साथ भी है इसलिये 'पृथिवी' यह ||| एक सामान्य नाम ही है। कायका अर्थ शरीर है। पृथिवीकायिक जीवने जिस शरीरको छोड दिया है
|| वह पृथिवीकाय कहा जाता है । यह मरे हुए मनुष्य आदिके कायके समान है । 'पृथिवीकायोऽस्याहूँ| स्तीति पृथिवीकायिक इस व्युत्पचि के अनुसार जो जीव उस पृथिवीकायसे संबद्ध है वह पृथिवीकायिक ॥ है। तथा जिस जीवके पृथिवीकायिक नाम कर्मका उदय है परंतु पृथिवीको कायस्वरूपसे ग्रहण न कर | वह कार्माण काय योगमें ही विद्यमान है वह पृथिवी जीव है। ____इसीतरह अप् अप्काय अप्कायिक और अप् जीव ये चार भेद जलके, तेज तेजकाय तेजकायिक का और तेज जीव ये चार भेद तेजके, वायु वायुकाय वायुकायिक और वायु जीव ये चार भेद वायुके एवं
| वनस्पति वनस्पतिकाय वनस्पतिकायिक और वनस्पति जीव ये चार भेद वनस्पतिके समझ लेने चाहिये का एवं जिसप्रकार पृथिवीके भेदोंमें अर्थकी योजना कर आये हैं उसीप्रकार शास्त्रानुसार इनके अर्थों की + भी कल्पना कर लेनी चाहिये ।
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