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त्रस जीव हैं। यदि भयसे भागनेवाले जीव त्रस कहे जायगे तो जो भयसे भागनेवाले होंगे वे ही नस
अश्यार कहे जांयगे, गर्भस्थ आदि जीवोंको त्रस नहीं कहा जायगा इसलिये ये 'जो जीव त्रसनामकर्मके उदयने । | वशीभूत हैं वे त्रस हैं' यही त्रस शब्दका अर्थ निर्दोष है किंतु जो भयसे भाग जानेवाले हैं वे त्रस 3] यह अर्थ ठीक नहीं। यदि यहांपर यह कहा जाय कि--
जब स शब्दके व्युत्पचिसिद्ध अर्थका ग्रहण न किया जायगा तब त्रस्यंतीति त्रसा' इसरूपसे ६ | उसकी सिद्धि बाधित है । सो ठीक नहीं। जिसतरह 'गच्छतीति गौः' यहांपर जो चले वह गौ है, यह
व्युत्पचिसिद्ध अर्थ स्वीकार न कर पशु विशेषरूप गौ अर्थ ही प्रधानतासे लिया जाता है और गोशब्द है की सिद्धिके लिए 'गच्छतीति गौ' यह केवल व्युत्पचि मानी जाती है उसीतरह सशब्दकी सिद्धिके । लिए 'त्रस्यंतीति त्रसाः' यह केवल व्युत्पत्ति प्रदर्शन है इस व्युत्पचिसिद्ध अर्थकी यहां प्रधानता नहीं है इसलिए 'जो जीव त्रस नामकर्मके वशीभूत हों वे त्रस हैं' यही त्रस शब्दका अर्थ निर्दोष है।
स्थावरनामकर्मोदयोपजनितविशेषाः स्थावराः॥३॥ ___जीवविपाकी स्थावर नामकर्मके उदयसे जो विशेष पर्याय प्रगट हो उस पर्यायका नाम स्लावर हूँ है। शंका
स्थानशीलाः स्थावरा इति चेन्न वाय्वादीनामस्थावरत्व प्रसंगात ॥ ४॥ स्थावर शब्दकी सिद्धि स्था गतिनिवृत्तौ धातुसे है और स्था धातुका अर्थ ठहरना है इसलिए 'तिष्ठ- है तीति स्थावरा' अर्थात् जो ठहरें वे स्थावर हैं यही स्थावर शब्दका अर्थ समझना चाहिए । सो ठीक || नहीं पवन अग्नि और जलकी एक देशसे दूसरे देशमें गमनक्रिया देखी जाती है। यदिजो ठहरनेवाले
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