SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 659
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ त०रा० समनस्क कहनेपर समस्त इंद्रियोंका ग्रहण होता है इसलिये अमनस्ककी अपेक्षा समनस्क अभ्यः भाषा हित होनेसे 'समनस्कामनस्का' इस सूत्रमें समनस्क शब्दका पहिले प्रयोग किया गया है ॥ ११॥ अध्याप से अपने द्वारा उपार्जन किये गये कर्मों के अनुसार पाई हुई पूर्ण इंद्रिय और अपूर्ण इंद्रियोंकी अपेक्षा २३९ जिनके त्रस स्थावर रूप दो भेद हैं और कार्माण शरीरके आधीन जिनके अवस्था विशेष नियमित है। || उन संसारी जीवोंका अब सूत्रकार उल्लेख करते हैं-- संसारिणस्त्रसस्थावराः॥१२॥ || अर्थ-त्रस और स्थावरके भेदसे संसारी जीव दो प्रकार के हैं। उनमें दींद्रिय त्रींद्रिय चौइंद्रिय और | 18 पंचेंद्रिय जीवोंकी त्रस संज्ञा है और एकेंद्रियजीव स्थावर कहे जाते हैं। वार्तिककार त्रस और स्थावर शब्दका अर्थ बतलाते हैं सनामकर्मोदयापादितवृत्तयस्त्रसाः॥१॥ जीवविपाकी अर्थात् जिसका फल जीवको ही भोगना पडता है ऐसे त्रसनामकर्म के उदय से जिस का विशेष पर्यायकी प्रकटता होती है उस पर्यायका नाम त्रस है । शंका सरुद्वेजनक्रियस्य नसाइति चेन्न गर्भादिषु तदभावादनसत्वप्रसंगात ॥२॥ त्रस शब्दकी सिद्धि त्रसी उद्वेग धातुसे है और उसका अर्थ उद्वेजन-भयभीत होकर भाग जॉनी, माना है इसलिये त्रस्यंतीति त्रसाः' जो जीव डर कर भागनेवाले हों वे त्रस हैं यही त्रस शब्दका अर्थ मानना चाहिये ? सो ठीक नहीं। जो जीव गर्भके अंदर वा अंडेके भीतर रहनेवाले हैं अथवा मूर्छित और सोये हुए हैं वे भयके वाह्य कारणों के उपस्थित होजानेपर भी भयभीत हो भागते नहीं और वे सब NDISHABANSIBI D ARSIGDAALCESS
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy