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________________ RWAREAC 3 भास -AA में एक दूसरेकी अपेक्षा रखनेवाले हैं। अस्तित्व आदि कियाओंकी एक ही कालमें तीनोंके अन्दर । समानरूपसे मोजूदगी है इसलिये तीनों ही प्रधान हैं और विशेष रूपसे प्रत्येकके अंतमें चकार है इस लिये यहां भी इतरेतरयोग नामक द्वंद्व समास है । इतरेतर योग द्वंदमें सब पदार्थों की प्रधानता इस-15 लिये रक्खी गई है कि जिन पदार्थों का इतरेतरयोग द्वंद्व किया. गया है वे सभी पदार्थ जिस पदार्थ के है। विशेषण माने गए हैं उस पदार्थका (विशेष्यका) समान रूपसे प्रधान बनकर एवं आपसमें एक दूसरे की अपेक्षा रखकर बोध कराते हैं। जिसतरह प्लक्षन्यग्रोधपलाशाः वृक्षः' इहांपर प्लक्ष आदि. तीनों ही समान रूपसे प्रधान होकर एवं आपस में सापेक्ष होकर वृक्षको जनाते हैं किंतु यह नहीं कि एक प्रधानतासे वृक्षको जनावे, दूसरा गौणरूपसे, अथवा दो प्रधानतासेजनावें, एक गौणरूपसे । उसीतरह 'सम्य-13 ग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः' इहांपर दर्शन आदि तीनों ही प्रधान होकर एवं आपसमें सापेक्ष हो । कर मोक्षमार्गको जनाते हैं किंतु यह नहीं कि सम्यग्दर्शन प्रधानतासे मोक्षमार्गको जनावे और ज्ञान || चारित्र गौणरूपसे अथवा सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान मुख्यरूपसे और सम्यक्चारित्र गौणरूपसे जनावे इस लिये यह वात सिद्ध हुई कि सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान और सम्यकचारित्र तीनों ही प्रधानरूपसे मोक्षमार्ग को जनाते हैं तब तीनों मिलकर ही मोक्षके मार्ग हैं। एक वा दो मोक्षके मार्ग नहीं कहे जा सकते। - प्रत्येकं सम्यग्विशेषणपरिसमाप्तिर्मुजिवत् ॥ ३७॥ . . . | देवदत्त जिनदत्त गुरुदच तीनों भोजन करें, यहांपर जिसतरह भोजन कार्यका तीनोंके साथ | सम्बन्ध है अर्थात् देवदत्त भोजन करे, जिनदत्त भोजन करे और गुरुदत्त भी भोजन करे उसी प्रकार || ४५ 'सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः' इहां पर भी सम्यक शब्दका दर्शन ज्ञान और चारित्र तीनोंके साथ HAGWEEKSECRECIRECTOGRECEBGREECREEMEMOR R AKESAGACASH
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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