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________________ वादी सभी पदार्थ सकारणक हैं यह मानकर और अत्मद्रव्यका कोई भी उत्पादक कारण न जानकर | उसे नहीं मानता उसके मतमें आत्मद्रव्य तो प्रसिद्ध है नहीं पर्याय पदार्थ ही प्रसिद्ध हैं एवं एक पयार्यके | आश्रय दूसरी पर्याय नहीं रहती यह नियम उसे इष्ट है तव 'अकारणपना' भी पदार्थकी पर्याय है इसलिए उसकी आश्रय कोई भी पर्याय न होनेके कारण अकारणत्व हेतु आश्रयासिद्ध है। तथा द्रव्यार्थिक नयकी अपेक्षा घट पट आदि द्रव्य अकारण भी हैं और विद्यमान भी हैं। जो विद्यमान है। है है वह सदा रहनेवाला है उसका कभी भी नाश और उत्पाद नहीं होता इसलिये उसकेलिये कारणोंकी PI आवश्यकता नहीं पडती किंतु जो पदार्थ अविद्यमान रहता है उसीकेलिए कारणों की आवश्यकता पडती का ॥ है क्योंकि कार्यकी उत्पत्ति के लिये योग्य कारणोंका रहना नियमित है तथा ऐसा कोई द्रव्य देख भी नहीं गया जो नित्य विद्यमान हो और कारणवान भी हो इसरीतिसे जब नित्य और विद्यमान पदार्थ ही नियमसे अकारणक होता है तब उपर्युक्त अनुमानमें नास्तित्वसे विरुद्ध अस्तित्व के साथ व्याप्ति होनेसे अकारणव विरुद्ध हेत्वाभास है। तथाअग्नि है क्योंकि धुवां है यह संदिग्धासिद्ध है क्योंकि मुर्ख मनुष्य बटलोईमें भाप देखकर यह संदेह कर बैठता है कि यहांपर वां है या नहीं। इसलिए पक्षमें हेतुका निश्चय न रहनेसे मुग्धबुद्धि पुरुषकी अपेक्षा धूम हेतु यहाँपर संदिग्धासिद्ध है। परीक्षामुख । १-जनसिद्धांतमें असिद्धहेत्वाभासके स्वरूपासिद्ध और संदिग्धासिद्ध ये दो ही भेद माने हैं परंतु परसिद्धांतमें आश्रयासिद्धिगद्या स्यात्स्वरूपासिद्धिरप्पथ । व्याप्यत्वासिद्धिरपरा स्पादसिदिग्तस्त्रिग ॥ ७६ ॥ मुक्तावली । इस कारिकाके अनुसार आश्रयशसिद्धि स्वरूपासिद्धि और व्याप्यत्वासिद्धि ये तीन भेद हैं। जिस हेतुका आश्रय सिद्ध न हो । PI वह माश्रयासिद्ध हेत्वाभास है। २-विपरातानिधितमानो विरुदोशरिणामी शब्दः कृतकत्वात् ॥ २९॥ अध्याय ६। जिस हेतुका अविनाभाव संबंध (व्याप्ति) . खबमधAAAECRER GANGBREFREEKSIRABIRBALCHURRESAME ।
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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