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है। चांदी भले ही एकम एक हो जाय तथापि उनके असाधारण धर्म-पीला सफेद स्वरूप वर्ण और प्रमाण आदि उनकी जुदाईमें कारण हे इमलिये वे लक्षण हैं। शंका--
अलक्षणमुपयोगो गुणगुणिनोरन्यत्वमिति चेन्नोक्तत्वात् ॥३॥ : जिसप्रकार उष्णता गुण है और अग्नि गुणी है उसीप्रकार ज्ञान आदि गुण और आत्मा गुणी १ 8 है। गुणका लक्षण जुदा माना गया है और गुणीका लक्षण जुदा माना गया है इसलिये लक्षणके भेदसे 8 हूँ आत्मा और ज्ञान आदि गुणोंको आपसमें भिन्न मानना चाहिये ? सो ठीक नहीं। जिसप्रकार उष्णता है को अग्निका स्वभाव माने विना आग्नका निश्चय नहीं किया जा सकता उसी प्रकार यदि ज्ञान आदि है है गुणोंको आत्माका स्वभाव न माना जायगा-आत्मासे भिन्न माना जायगा तो आत्मापदार्थका
भी निश्चय न हो सकेगा यह वात खुलासारूपसे ऊपर बता दी गयी है इसलिये आत्मा और ज्ञान 3 आदि गुणोंका सर्वथा भेद सिद्ध नहीं हो सकता। यदि यहाँपर फिर यह शंका की जाय कि--
लक्ष्यलक्षणभेदादिति चेन्नानवस्थानात् ॥ ४॥ ६ गुणीको लक्ष्य माना गया है और गुणको लक्षण माना गया है । लक्ष्यसे लक्षणको भिन्न होनाही ६ हूँ चाहिए इसलिए लक्ष्य लक्षणके भेदसे आत्मा और गुणका आपसमें भेद मानना आवश्यक है।सो ठीक तू
नहीं। क्योंकि वहांपर यह प्रश्न उठता है कि जिस लक्षणसे लक्ष्य जाना जाता है उस लक्षणका कोई
अन्य लक्षण है कि नहीं है। यदि यह कहा जायगा कि उसका कोई लक्षण नहीं है वह लक्षण-स्वरूप है 'रहित है तो जिसप्रकार मैढ़ककी चोटी वा गधेके सींग असंभव पदार्थ हैं इसलिए इनका अभाव है
१५९४ उसीप्रकार लक्षणका भी अभाव कहना पड़ेगा और जब लक्षण पदार्थ ही संसारमें न रहेगा तव किसी
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