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________________ जिसतरह मद मोह और भ्रांतिकी करनेवाली शराबके पीनेसे मनुष्यकी स्मृति नष्ट हो जाती है, ६ और वह काठके समान निस्तब्ध हो जाता है उसीप्रकार कर्मेंद्रिय हाथ पांव आदिक निस्तब्ध हो जाने 8 अध्याय 4 पर ज्ञानादि आत्मिक स्वरूपकी प्रकटता न होनेके कारण आत्मामूर्त बन जाता है इसलिये जब आत्मा तू मूर्तिक भी है तब पुद्गल कर्मोंसे उसका अभिभव युक्ति सिद्ध है । यदि यहां पर यह शंका की & जाय कि-- करणमोहकर मद्यमिति चेन्न तद्विविधकल्पनायां दोषोपपत्तेः॥३०॥ नेत्रआदि इंद्रियां पृथिवी आदि मूर्तिक पदार्थोंकी विकारस्वरूप हैं इसलिये मूर्तिक होनेसे उन्हींका शराबसे अभिभव होता है आत्मा अमूर्तिक पदार्थ है इसलिये उसके गुणोंका अभिभव नहीं हो सकता अतः शराबके दृष्टांतसे जो ऊपर आत्माका अभिभव माना है वह व्यर्थ है ? सो ठीक नहीं। विकल्पोंके, आधारसे यह दोष यहां ठीक लागू नहीं होता वे विकल्प इसप्रकार हैं चक्षु आदि इंद्रियां चेतन पदार्थ हैं कि अचेतन है ? यदि उन्हें अचेतन माना जायगा तो शराब हूँ अचेतन इंद्रियोंकी व्यामोह करनेवाली नहीं कही जा सकती क्योंकि यदि वह अचेतन पदार्थ के व्यामोह। * करनेवाली भी मानी जायगी तो जिस प्याले आदि पात्रमें वह शराब मौजूद है पहिले उसका व्यामोह है होना चाहिये परंतु सो होता दीख नहीं पडता इसलिये इंद्रियोंको अचेतन मानने पर उनका अभिभव .. सिद्ध नहीं होता । यदि यह कहा जायगा कि वे चेतन हैं तब पृथिवी आदिमें तो चैतन्य स्वभावकी . ६ पृथक् रूपसे उपलब्धि है नहीं जिसके संबंधप्से इंद्रियोंको चेतन कहा जाय किंतु चेतना (आत्म) द्रव्यके संबंधसे ही इंद्रियोंको चैतन्यस्वरूप माना जाता है वह चैतन्य आत्माका ही गुण होनेसे आत्माका ही है 15AISHISHASHADHKIROTE ANSINESCORRESPONSTRISTOTRADIOINSTAGRAM.
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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