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अध्याय
TA BHABHERUGRAMSHEMEDABASIनया
आत्मा अमूर्तिक पदार्थ है और कर्म पौद्गलिक हैं जो कि आत्मास्वरूपसे सर्वथा वहिर्भूत हैं इस-1 | लिये आत्माका पुद्गल स्वरूप कर्मोंसे अभिभव नहीं हो सकता और जब अभिभव ही नहीं सिद्ध होता |||| | तब औपशमिक आदि कभी आत्माके परिणाम नहीं कहे जा सकते ? सो ठीक नहीं। जिसप्रकार जो
आत्मा अनादि पारिणामिक चैतन्यभावके आधीन है और इसलिये जो चैतन्यवान भी है उस चैतन्यः | |वान आत्माकी नारकी और मतिज्ञान आदि विशेष पर्याय चैतन्यस्वरूप ही माने जाते हैं उसीप्रकार | | यह आत्मा अनादिसे कार्माण शरीरके आधीन होनेके कारण कर्मवान और कर्मवान होनेसे मूर्तिमान | ४ा भी है उस मूर्तिमान आत्माकी गति आदि विशेष सामर्थ्य भी मूर्तिक है इसप्रकार जब अनादि कर्मबंध | |संतानवान आत्मा मूर्तिक है तथा मूर्तिक पुद्गलीक कर्मोंसे मूर्तिक आत्माका अभिभव हो सकता है | | तब अमूर्तिक आत्माका पुद्गलस्वरूप काँसे अभिभव नहीं हो सकता यह कहना व्यर्थ है। तथा
अनेकांतात् ॥ २८ ॥ सुराभिभवदर्शनात् ॥ २९॥ अनादिकालीन बंधसंतानके पराधीन भी यह आत्मा कर्मबंधके साथ एकम एक होनेसे इस अपेक्षासे | कथंचित् मूर्तिक है और अपने ज्ञान दर्शनस्वरूपसे कभी भिन्न नहीं होता इसलिये इस अपेक्षा अमूर्तिक | भी है । दोनोंकी एक कालमें क्रममे विवक्षा करने पर कथंचित् मूर्तामूर्त भी और दोनोंकी एक साथ विवक्षा करने पर अवक्तव्य भी है इत्यादि सप्तभंगीमें कथंचित् आत्मा मूर्तिक भी है इसलिये मूर्तिक कर्मपुद्गलोंसे मूर्तिक ही आत्माका अभिभव है अमूर्तिकका नहीं। जो एकांतसे आत्माको सर्वथा मूर्तिक मानता है उसीके मतमें वह दोष है कथंचित् मूर्त और अमूर्त माननेवाले आहेत मतमें उक्त दोष स्थान नहीं पा सकता तथा और भी यह बात है कि--
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