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________________ A Protection P4 ६ प्रकारके हैं यह जो प्रतिज्ञा है वह प्रधानताकी अपेक्षा है इसलिये उपयुक्त प्रतिज्ञा भंग नहीं हो सकती। यदि सूत्रमें आदि शब्दका उल्लेख किया जायगा तो आदिशब्दसे गृहीत अस्तित्व आदि प्रधान माने जायंगे और उपलक्षण होनेसे जीवत्व आदि अप्रधान माने जायगे। अथवा तद्गुणसंविज्ञान बहुव्रीहि करनेपर दोनों ही प्रधान होंगे इसलिये उपर्युक्त प्रतिज्ञाकी रक्षा न हो सकेगी। शंका सान्निपातिकभावोपसंख्यानमिति चेन्नाभावात् ॥२१॥ मिश्रशन्देना क्षिप्तत्वाच्च ॥२२॥च शब्दवचनात् ॥२३॥ - आगममें औपशमिक आदि भावोंके सिवाय एक सान्निपातिक और भी भाव माना है इसलिये । उसका भी 'औपशमिक क्षायिको भावो' इत्यादि सूत्रमें उल्लेख करना चाहिये तथा जिसतरह औपशमिक आदि भावोंके भेदसूचक सूत्र कहे गए हैं उसीप्रकार उसका भी भेदसूचक सूत्र कहना चाहिये? सो ठीक नहीं । औपशमिक आदि भावोंके अतिरिक्त छठा कोई भी सान्निपातिक भाव नहीं इसलिये प्रधानतासे उसका उल्लेख नहीं किया गया। तथा: १अपना और दूसरे पदार्थों का ग्रहण करना उपलक्षण है । यह पहिले कहा जा चुका है उपलक्षण गौणस्वरूप होता है । २ बहुबीहि समासके दो भेद हैं एक तद्गुणसंविज्ञान वहुव्रीहि दूसरी अतद्गुणसविज्ञान वहुव्रीहि । जिन पदार्थीका आपसमें समास हो उन सब पदार्थीका जहां पर ग्रहण हो वह तद्गुण संविज्ञान बहुव्रीहि है और जहां पर सबका ग्रहण न हो वह अतद्गुण संविज्ञान बहुव्रीहि है जिसतरह 'लंचकर्णमानय' लंबे कानवाले पुरुषको लाओ यहांपर कानविशिष्ट पुरुप लाया जाता है इसलिये यह तद्गुण संविज्ञान बहुव्रीहि समास है और यहांपर लंच और कर्ण दोनों शब्दोंकी प्रधानता है तथा 'सागरमानय' जिसको सागर . देखा हो वा जिसने सागर देखा हो ऐसे पुरुषको लाओ यह अतद्गुण संविज्ञान बहुव्रीदि है क्योंकि यहां पर सागरविशिष्ट 'पुरुषका पाना नहीं होता। यदि सूत्रमें आदि शब्द माना जायगा और 'जीवभव्याभव्यत्वादीनि यहांपर तद्गुण संविज्ञान बहुब्रीहि मानी जायगी तो सब हो प्रधान होंगे। A
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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