________________
TEACHERECRACCORCHINCRECRUARORATRE
कि सूत्रमें जो च शब्द है वह अस्तित्व आदिका समुच्चायक है, गति आदिका नहीं हो सकता। शंका
अध्याव . आदिग्रहणमत्र न्याय्यमिति चेन्न त्रिविधपारिणामिकभावप्रतिज्ञाहानेः॥१९॥
जब अस्तित्व आदिको भी पारिणामिक भाव माना गया है तब 'जीव भव्याभव्यत्वानि च' इस ६ सूत्रमें आदि शब्दका उल्लेख करना चाहिये अर्थात् 'जीव भव्याभव्यत्वादीनि ऐसा सूत्र पढना चाहिये? ४ हूँ सो ठीक नहीं । पारिणामिक भाव तीन प्रकारका है यह ऊपर प्रतिज्ञा की जाचुकी है । यदि सूत्रमें | हूँ आदि शब्दका उल्लेख किया जायगा तो जीवत्व भव्यत्व अभव्यत्व अस्तित कर्तृत्व आदि तीनसे हूँ
अधिक धर्म पारिणामिक भाव माने जायगे फिर 'पारिणामिक भाव तीन प्रकारका है। यह प्रतिज्ञाभंग है। हो जायगी इसलिये सूत्रमें आदि शब्दका ग्रहण नहीं किया जा सकता यदि यहांपर यह शंका की है जाय कि--
समुच्चयार्थेपि चशब्दे तुल्यमिति चेन्न प्रधानापेक्षत्वात् ॥२०॥ _ 'जीव भव्याभव्यत्वानि च' इससूत्रमें आदि शब्दके उल्लेख करनेपर और उससे अस्तित्व आदि भावोंका भी ग्रहण होनेपर पारिणामिक भाव तीन प्रकारके हैं। यह प्रतिज्ञा भंग हो जायगी, यह दोष दिया गया था परंतु यह प्रतिज्ञा तो चशब्दके उल्लेखसे भी भंग हो जाती है क्योंकि चशब्दका अर्थ है समुच्चय माना है और उससे भी आस्तित्व आदिका ग्रहण होता है इसलिये चशब्दका उल्लेख न कर है आदि शब्दका ही सूत्रमें उल्लेख करना युक्त है ? सो ठीक नहीं। सूत्रकारने अपने कंठसे जीवत्स आदि
तीन ही पारिणामिक भावोंका उल्लेख किया है इसलिये प्रधानतासे तीन ही पारिणामिक भाव हैं तथा ५७० च शब्दसे अस्तित्व आदि साधारण भावोंका ग्रहण है इसलिये वे गौण हैं । पारिणामिक भोव तीन
HATURALLGEMEGESTEELCASS