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त०रा० भाया
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उदयाभाव क्षय और ( उपशम ) एवं देशघाती स्पर्धकों के उदय रहने पर सर्व घातियों के अभाव से जो भाव आत्मा के अंदर प्रकट होता है वह क्षायोपशमिक भाव है । वार्तिककार स्पर्धकका खुलासा अर्थ बतलाते हैं
अविभागपरिच्छन्नकर्मप्रदेशर सभागप्रचयपक्तिक्रमवृद्धिः क्रमहानिः स्पर्धकं ॥ ४ ॥
जो कर्म उदय प्राप्त है उसके प्रदेश अभव्योंसे अनंतगुणे और सिद्धों के अनंतवें भाग प्रमाण हैं । उनमें सबसे जघन्य गुणवाला प्रदेश ग्रहण किया उसके अनुभाग-रसके वहाँतक बुद्धिसे टुकडे कर डाले जिससे फिर उनका विभाग न हो सके उन टुकडोंका नाम अविभाग प्रतिच्छेद है ऐसे आविभाग प्रतिच्छेद जीवराशिसे अतंतगुणे माने हैं उस जघन्य अविभाग प्रतिच्छेदवाले प्रदेशों के परमाणुओं की एक | राशि बनाई उसीप्रकार फिर जघन्य गुणवाला दूसरा प्रदेश लिया मिलाकर फिर एक राशि करली । | इसीप्रकार आगे भी इन्हीं देशों के समान सर्वजघन्य गुणवाले जितने भी प्रदेश हैं उन सबके अनुभागों के बुद्धिसे ऐसे टुकडे कर लिये गये जिनका फिर विभाग न हो सके उन सब अविभाग प्रतिच्छेदों को अपने अपने प्रदेशों के साथ मिलाकर राशियां कर लीं इसप्रकार उन समान अविभाग प्रतिच्छेदों के धारक प्रत्येक कर्म प्रदेश (परमाणु) की वर्गसंज्ञा है और वर्गों के समूहका नाम वर्गणा है ।
पहिले जो सर्व जघन्य गुणवाले प्रदेशको ग्रहण किया था उससे अब एक अविभाग प्रतिच्छेद अधिक प्रदेशको ग्रहण किया। उसके पहिले के ही समान बुद्धिसे टुकडे किये । उन जीव राशिले अनंतगुणे अविभाग प्रतिच्छेदों के समान अंश धारण प्रदेशों की एक राशि की । उसीप्रकार एक अविभाग प्रतिच्छेद अधिक दूसरा प्रदेश ग्रहण किया और उसे भी वैसा ही किया इसप्रकार जितने भी एक अविभाग
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अध्याय
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