________________
अध्याय
Mara-RHGA
भावको भी गिनाना चाहिये ? सो ठीक नहीं। विशेषोंसे सामान्य भिन्न पदार्थ नहीं किंतु विशेषके उल्लेखप्ते | 2 सामान्यका ग्रहण सुतरां हो जाता है जिसतरह पर्व-पोटरा आदि विशेषोंसे अंगुलि पदार्थ भिन्न
नहीं किंतु वह पर्व आदि स्वरूप ही है इसलिये जिसप्रकार पर्व-पोटरा आदि स्वरूप ही अंगुलि | ही पदार्थ है पर्वादिसे भिन्न अंगुलि नहीं है उसीप्रकार केवलज्ञान केवलदर्शन आदि सब क्षायिक भाव । स्वरूप ही सिद्धत्व है इसरीतिसे क्षायिकभाव केवलज्ञान आदिका उल्लेख रहनेसे ही जब सिद्धत्व पर्यायडू ई का उल्लेख हो जाता है तब क्षायिक भावोंमें सिद्धत्व पर्यायके भिन्न माननेकी कोई आवश्यक्ता नहीं।
क्षायोपशमिक भावके अठारह भेद ऊपर कहे गये हैं सूत्रकार भिन्न भिन्न रूपसे उनका नाम गिनाते हैंज्ञानाज्ञानदर्शनलब्धयश्चतुस्त्रित्रिपंचभेदाः सम्यक्त्वचारित्रसंयमासंयमाश्च ॥५॥
मति श्रुत अवधि और मनःपर्यय ये चार ज्ञान, कुमति कुश्रुत कुअवधि तीन अज्ञान (कुज्ञान) * चक्षुदर्शन अचक्षुदर्शन अवधिदर्शन ये तीन दर्शन, क्षायोपशमिकदान क्षायोपशमिकलाम क्षायोप-ट्र
शमिकभोग क्षायोपशमिक उपभोग और शायोपशामिक वीर्य ये पांच लब्धियां, वेदकसम्यक्त्व, सराग | चारित्र और संयमासंयम (देशव्रत ) इसप्रकार अठारह प्रकारका क्षायोपशमिकभाव है। इन अठारह भावोंकी प्रकटता आत्मामें कर्मोंके क्षायोपशमसे होती है।
चतुरादीनां कृतद्वंद्वानां भेदशब्देन वृत्तिः ॥१॥ चत्वारथ त्रयश्च त्रयश्च पंच च चतुरित्रिपंच, ते भेदा येषां ते चतुरित्रिपंचभेदाः, यह यहाँपर द्वंद्वपूर्वक बहुव्रीहि समास है। शंका
SATUREGNASALAUREGISSISPLOADES
५३२