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________________ अध्याय है| है। अर्थात् मोहनीय कर्मकी अट्ठाईस प्रकृतियोंमें सात प्रकृतियोंके सर्वथा क्षयसे सम्यक्त्व और पच्चीस १०रा० , भेदोंके सर्वथा नाशसे क्षायिक चारित्र होता है। ऊपर स्पष्टरूपसे सम्यक्त्व और चारित्र दोनों गुणोंकी भाषा प्रकटता वर्णन कर दी गयी है । शंका५३१ दानांतराय आदि कर्मों के सर्वथा नष्ट हो जानेपर दान लाभ आदि पांचो लब्धियां जब अभय | दान आदिके होनेमें कारण मानी गयी हैं तब सिद्धोंमें भी अभयदान आदि मानने चाहिये क्योंकि 2 वहांपर भी दानांतराय आदिका सर्वथा अभाव है फिर जिसतरह अभयदान आदिका कार्य केवलियोंके । | दीख पडता है उसीप्रकार सिद्धोंके भी दीख पडना चाहिये ? सो ठीक नहीं। अभयदान आदि भावोंके 8 | होनेमें शरीर नाम कर्मके उदय आदिकी अपेक्षा है। जहांपर शरीर आदि होंगे वहीपर अभयदान आदि | रहेंगे किंतु जहाँपर शरीर आदिका अभाव रहेगा वहांपर वे नहीं रह सकेंगे । केवलियोंमें अभयदान है है आदिके होने कारण शरीर है इसलिये उनके अभयदान क्षायिकलाभ आदि भाव होते हैं सिद्ध अशरीर | हैं-उनके किसी प्रकारके शरीरका संबंध नहीं इसलिये उनके अभयदान आदि कार्य नहीं हो सकते। जिसतरह अनंतवीर्यको केवलज्ञान स्वरूप माना है उसीप्रकार अनंत अव्यावाधरूप जो सिद्धोंमें | गुण माना है उसी स्वरूप अभयदान आदिको स्वीकार किया गया है अर्थात् जिसप्रकार केवलज्ञानमें छ ही अनंतवीर्यकी वृत्ति-सचा सहयोगरूपसे समाई हुई है उसीप्रकार अव्यावाधरूपसे अभयदानादिकी हूँ वृचि सिद्धोमें परिगणित है । यदि कदाचित् यह शंका की जाय कि_____आगममें सिद्धत्व गुणको क्षायिक माना गया है परंतु यहाँपर जो क्षायिक भावके भेद गिनाये गये हैं उनमें सिद्धत्व भावको छोड दिया है इसलिये ज्ञान दर्शन आदिके साथ सिद्धत्व नामक क्षायिक AA-SASARAKHABARBASIC BAAAAAAAASANA
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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