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अर्थात् उत्तरपदार्थ प्रधान कर्मधारय समास है कि अन्यपदार्थ प्रधान वहुव्रीहि समास है । यदि यह कहा जायगा कि 'विशेषण विशेष्येणेति अर्थात् विशेष्य के साथ विशेषण का समास होता है, इस सूत्र से | वहां द्विनवाष्टादशैकविंशतित्रय एव भेदाः, द्विनवाष्टादशैकविंशतित्रिभेदा, यह कर्मधारय समास है तब 'विशेष्य और विशेषणोंमें विशेषणोंका पूर्वनिपात होता है' इस नियमके अनुसार भेद शब्दका पहिले प्रयोग होना चाहिये क्योंकि द्विनव आदि शब्द यहां विशेष्य और भेदशब्द विशेषण है । यहाँपर यह | शंका न करनी चाहिये कि द्वि आदि शब्द विशेष्य हो ही नहीं सकते क्योंकि 'दे यमुने समाहृते इति | द्वियमुनं' अर्थात् जहां पर दो यमुना इकट्ठी हों वह द्वियमुन है' इत्यादि पूर्वपदार्थप्रधान अव्ययीभाव समास के स्थलों पर द्वि आदि शब्दोंको विशेष्य और यमुना आदि शब्दों को विशेषण माना गया है | इसलिये द्विनवाष्टादशै केत्यादि सूत्रके स्थानपर भेदद्विनवाष्टेत्यादि होना चाहिये ? सो ठीक नहीं । जहां पर 'के द्वे ?' कौन दो हैं । इस सामान्य अर्थका प्रतिभास रहनेपर 'यमुने' 'यमुना नामकी दो नदी | हैं' यह विशेष कथन है वहीं पर द्वि शब्दको विशेष्य माना गया है किंतु जहांपर पहिले से ही 'यमुने' यह | कहा जायगा वहां पर द्विवचनके प्रयोगसे 'दो यमुना नदी हैं' यह अर्थ निकल आवैगा फिर द्विशब्दका प्रयोग व्यर्थ ही है इसरीति से जहांपर पहिले ही द्विशब्दका उल्लेख किया जायगा वहां तो विशेष अकांक्षा होनेपर यमुना शब्दके कहने से दोनों पद सार्थक हैं किंतु यदि पहिले से ही 'यमुने' यह कहा | जायगा तब द्विवचन द्विशब्दका अर्थनिकल जायगा फिर द्वि शब्दका प्रयोग ही व्यर्थ है परंतु वैसी | व्यवस्था 'द्विनवाष्टादशेत्यादि' स्थलपर नहीं | यहांपर यदि पहिले 'भेदाः' ऐसा कहाजायगा वहां पर यह १ | कर्मधारय समास तत्पुरुपका ही भेद है।
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अंगान
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