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________________ रूपसे मान लिया जाता है इसलिये भावप्रत्ययके विना भी 'द्ववेकयोः' इस निर्देशकी जगह 'दित्वेकत्वयोः' ऐसे कहनेकी कोई आवश्यकता नहीं । परंतु ऊपर कहा जा चुका है कि द्वि आदि शब्दों, अध्वान को संख्यावाचक कहना केवल तर्कके बलपर निर्भर है व्याकरणशास्त्र उन्हें संख्यावाचक माननेमें सहमत | PI नहीं। इसरीतिसे जब 'दयेकयोर्दिवचनेकवचने' शंकाकारके मतानुसार दि और एक शब्दको संख्या- 12 वाचकपना सिद्ध नहीं हुआ तब तुल्ययोगके अभावसे उपर्युक्त इतरेतर बंदसमास मानना ठीक नहीं।। ॥ इस बलवान प्रश्नका वार्तिककार समाधान देते हैंIFI द्विनवाष्टेत्यादि सूत्रमें जो द्वि आदि शब्द हैं वे संख्येयप्रधान ही हैं एकविंशति शब्द भी संख्येयप्रधान हूँ|| है क्योंकि विंशति आदि शब्द किसी समय संख्यानप्रधान भी होते हैं, किसी समय संख्येय प्रधान भी। || होते हैं' यह व्याकरणका सिद्धांत ऊपर कहा जा चुका है। इसरीतिसे जब दि आदि सभी शब्द संख्येय | । प्रधान हो गये तब तुल्ययोग होनेसे इतरेतर द्वंद्वसमासके माननेमें कोई आपत्ति नहीं हो सकती। समास अनेक पदोंका होता है। किसी समासमें दो पदार्थों में पूर्वपदार्थ प्रधान रहता है जिस तरह अव्ययीभावमें, किसी समासमें उत्तरपदार्थ प्रधान रहता है जिसतरह तत्पुरुषमें, किसी समासमें जितने 5 पदार्थोंका समास किया जाय सभी प्रधान रहते हैं जिसप्रकार द्वंद्व, और किसी समासमें जिन पदार्थोंके | साथ समास किया जाता है उनसे अन्य ही पदार्थ प्रधान रहते हैं जिसतरह बहुव्रीहि समासमें । यहाँपर है। जो भेद शब्दके साथ द्विनव आदि पदोंका समास है वहां पर प्रश्न होता है कि वह स्वपदार्थ प्रधान | १। पूर्वपदार्थप्रधानोऽव्ययीभावः । उत्तरपदार्थप्रधानस्तत्पुरुषः । सर्वपदार्थप्रधानो द्वंद्वः । अन्यपदार्थप्रधानो बहुव्रीहिः। | सिद्धांतकौमुदी पृष्ठ १५। SAGACASSACAFEREGAORECASIDASCAMER COBARABAR BHABHINA BRE
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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