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________________ भार CLICK की व्यवस्था सर्वथा भेद पक्षमें ही मानी जायगी तो 'शाखाओंके वजनसे वृक्ष टूटा जाता है यहॉपर । ___० एक ही पदार्थकी पर्याय शाखा करण न पड सकेगी परन्तु वह एक ही पडती है। उसीप्रकार आत्मामे ६५ भिन्न ज्ञान पदार्थ नहीं । ज्ञानादि स्वरूप ही आत्मा है इसलिये आत्मा और ज्ञानका आपसमें अभेद है। * तथा यह आत्मा है और यह ज्ञान है । इसप्रकार भेद विवक्षा रहनेपर (वृक्ष और शाखाके समान) ९ जुदे २ भी हैं इसलिये आत्मा और ज्ञानका आपसमें भेद भी है। इस तरह आत्मा और ज्ञानमें कथंचित् । भेदाभेद अर्थात द्रव्यार्थिक नयकी अपेक्षा अभेद और पर्यायार्थिक नयकी अपेक्षा भेद मानना चाहिये यदि कर्ता करणकी व्यवस्था सर्वथा भेद पक्षमें ही मानी जायगी तो 'आत्मा ज्ञानके द्वारा पदार्थों को जानता है। यहां पर एक ही पदार्थका परिणाम ज्ञान, करण न हो सकेगा। इसलिये कथंचित् भेदाभेद पक्षमें ही कर्तृ करणकी व्यवस्था मानना ठीक है और भी यह है कि करणस्योभयथोपपत्ते व्यस्य मूर्तिमदमूर्तिभेदवत् ॥ २३ ॥ द्रव्य मूर्तिक भी है और अमूर्तिक भी है। किंतु द्रव्यके विषयमें यह आग्रह नहीं कि वह मूर्तिक ही है अमूर्तिक नहीं अथवा अमूर्तिक ही है मूर्तिक नहीं। क्योंकि जीव पुद्गल धर्म अधर्म आकाश और कालके भेदसे द्रव्योंके छै भेद हैं। उनमें पुद्गल द्रव्य मूर्तिक है और धर्म अधर्म आकाश और काल अमूर्तिक हैं तथा द्रव्यार्थिक नयकी अपेक्षा आत्मा अमूर्तिक है और पर्यायार्थिक नयकी अपेक्षा आत्माके साथ अनादि कालसे कार्माण शरीरका सम्बन्ध है इसलिये वह मूर्तिक भी है इस रीतिसे जिस प्रकार मूर्तिक और अमूर्तिकके भेदसे द्रव्य दो प्रकारका है उसीप्रकार विभक्तकर्तृक और अविभक्त ' १ जिसमें रूप रस गंपादिक हों वह मूर्तिक और जिसमें वे न हों वह अमूर्तिक है। PHSSPISABPSSS
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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