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एक वचनांत क्यों कहा गया ? सो ठीक नहीं। ओपशमिक आदि भले ही अनेक रहें परंतु जीव स्वभाव एक ही है तत्वका अर्थ भी स्वभाव ही है इसलिये 'तत्त्वं' यह एक वचनांत प्रयोग अयुक्त नहीं । यदि 18/ अध्याय यहांपर फिर यह शंका की जाय किफलभेदान्नानात्वमिति चेन्न स्वात्मभावभेदस्याविवक्षितत्वात; गावो धनमिति यया ॥ १७ ॥
प्रत्येकमभिसंबंधाच्च ॥ १८॥ जब कि औपशमिक आदि स्वभावके ही भेद हैं तब भेदोंके नानापनेसे स्वभाव भी नाना कहने पडेंगे इसलिये स्वभावपदार्थ एक नहीं कहा जा सकता और स्वभाव पदार्थके एक न होनेपर तत्वं' यह एक वचनांत प्रयोग असाधु है । सो भी ठीक नहीं 'गावो धन' 'बहुतसी गायें धन हैं। यहांपर घि घातुसे 'यु' प्रत्यय करनेपर धन शब्दकी सिद्धि हुई है । और यहांपर धनस्वरूप गायोंके अनेक रहते भी धन के भेदकी विवक्षा नहीं मानी गई है उसीप्रकार स्वभावके भले ही औपशमिक आदि भेद रहें तो भी उनके भेदसे यहां स्वभावभेदकी विवक्षा नहीं इसलिये 'तत्वं' यह एक वचनांत प्रयोग अयुक्त नहीं। हूँ अर्थात् स्वभावोंके नाना भेद होनेपर भी उन सवों में जीव स्वभावपना एक है। और भी यह वात है कि- है
तत्व शब्दका प्रत्येक औपशमिक आदिके साथ संबंध है अर्थात् जीवका औपशमिक भाव निज.2 तत्व है । क्षायिक भाव निज तत्व है । क्षायोपशमिकभाव निज तत्व है इत्यादि इसरीतिसे तत्वशब्दका जब प्रत्येकके साथ भिन्न भिन्न संबंध हैं तव 'तत्व' यह एक वचनांत प्रयोग अनुचित नहीं। शंका
इंद्वनिर्देशो युक्त इति चन्नोमयधर्मव्यतिरेकेणान्यभावप्रसंगात् ॥ १९॥ सूत्रकारने 'औपशमिकक्षायिको भावौ मिश्रश्च जीवस्य स्वतत्वमोदायिकपारिणामिको च' ऐसा पढा
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