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मध्याव
त०रा० मापा
उभयात्मको मिश्रः क्षीणाक्षीणमदशक्तिकोद्रववत् ॥३॥ कोदों एक जातिका धान्यविशेष है वह मादक पदार्थ है जिससमय उसे जलसे धो दिया जाता है | है उससमय धोनेसे कुछ मद शक्तिके क्षीण हो जाने पर और कुछके तदवस्थ रहने पर जिसप्रकार
कोदों पदार्थ मिश्र मद शक्तिका घारक कहा जाता है उसीप्रकार कोंके क्षय करनेवाले कारणों के उपस्थित रहनेपर कर्मकी कुछ शक्तिके नष्ट हो जानेपर और कुछके सचामें मौजूद रहनेपर एवं कुछ के उदय | रहनेपर जो आत्माकी ‘दही गुडके समान' मिली हुई अवस्था होती है उस अवस्थाका नाम मिश्र है। ।
द्रव्यादिनिमित्तवशात्कर्मणः फलप्राप्तिरुदयः॥४॥ द्रव्य क्षेत्र काल आदि कारणोंसे कर्मके पाक होने पर जो फल की प्राप्ति होना है उसका नाम उदय है।
द्रव्यात्मलाभमात्रहतुकः परिणामः॥५॥ जो भावद्रव्यके स्वरूपकी प्राप्ति कराने कारण हो और जिसमें कोई दूसरा निमित्त कारण न हो वह परिणाम कहा जाता है।
तत्प्रयोजनत्वाद् वृत्तिवचनं ॥६॥ औपशमिक आदि शब्दोंमें प्रयोजन अर्थमें ठञ् प्रत्ययका विधान है। इसलिये जहां पर कौंका Pउपशम प्रयोजन हो वह औपशमिक भाव है । जहाँपर क्षय प्रयोजन हो वह क्षायिक भाव है । जहां पर | | उदय प्रयोजन हो वह औदयिक और जहांपर परिणाम प्रयोजन हो वह पारिणामिक भाव है । यह
औपशमिक आदि शब्दोंकी व्युत्पचि है। स्वतत्त्वं इस शब्दका अर्थ यह है-औपशमिक आदिक भाव ई जीवके असाधारण धर्म हैं। सिवाय जीवके अन्य किसी में नहीं रहते । और स्वं तत्व स्वतत्त्वं यह उसका
समास है । शंका
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