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अथ द्वितीयाध्यायः।
-०रा०
बटा
भाषा
BARABARITERATES
मोक्षशास्त्र ग्रंथमें मोक्षमार्गका निरूपण है उसके कारण सम्यग्दर्शन आदि हैं इसलिये मोक्षमार्गके 15 | निकट संबंधी होनेसे उनका इस ग्रंथमें वर्णन किया गया है। प्रथमाध्यायमें सम्यग्दर्शनादिके लक्षण BI उत्पचि और विषय संबंधका वर्णन कर दिया गया है। वहांपर सम्यग्दर्शनका लक्षण 'तत्त्वार्थश्रद्धानंद | सम्यग्दर्शन' यह कहा जा चुका है और तत्त्वार्थ शब्दसे वहांपर जीव अजीव आदि पदार्थों का ग्रहण किया | | गया है। अर्थात जीव आदि पदार्थों का वास्तविक रूपसे श्रद्धान होना सम्यग्दर्शन है। वहांपर यह शंका | | होती है कि जीव आदि पदार्थोंमें जब सबका श्रद्धान सम्यग्दर्शन कहा गया है तब उनमें प्रथमोद्दिष्ट |
जीव पदार्थका श्रद्धान करना भी सम्यग्दर्शन वतलाया गया है जीवका श्रद्धान किस स्वरूपसे करना। | चाहिये जिसके निश्चय ज्ञान, उपासना-आराधना आदिसे वह सम्यग्दर्शन प्रगट हो जाय। इसकेलिये | ग्रंथकार जीवका स्वरूप वतलाते हैं अर्थात् आत्माका स्वभाव वतलाते हैं और वही श्रद्धान करने योग्य | है क्योंकि स्वभाव और आत्माका अभेद है इसलिये स्वभावके श्रद्धानसे निर्वाधरूपसे जीवका श्रद्धान | हो जाता है। फिर वहाँपर शंका होती है कि वह तत्त्व-आत्माका स्वभाव चीज क्या है ? उसका सूत्र| कार समाधान देते हैं-औपशमिकक्षायिकावित्यादि । अथवा इससूत्रकी उत्थानिका इसप्रकार भी है
प्रमाण और नयका वर्णन पहिले अध्यायमें कर दिया गया है वे प्रमाण और नय आदि प्रमेयोंके ज्ञान स्वरूप हैं क्योंकि उनसे जीव आदि पदार्थोका ज्ञान होता है तथा प्रमेय शब्दका अर्थ-जीव अजीव
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