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________________ PROTESSERECOREBURGER नय किसी नियत अर्थको ही द्योतन करता है। समभिरूढनय सोना उठना बैठना आदि अनेक क्रियायुक्त पदार्थको भी द्योतित करता है परंतु एवंभूतनय जिस कालमें जो अर्थ क्रिया हो रही है उसीकी अपेक्षा 8/ अध्याय उस पदार्थको द्योतित करता है इसलिये समभिरूढनयकी अपेक्षा एवंभूतनय अल्पविषय है । तथा कार्य र कारणता इसप्रकार है नैगमनयके विषयमें ही संग्रहनयकी प्रवृत्ति है इसलिये नैगमनय कारण और संग्रहनय कार्य है। संग्रहनयके विषयमें व्यवहारकी प्रवृत्ति है इसलिये संग्रहनय कारण और व्यवहारनय कार्य है इसीतरह से आगे भी पहिला पहिला नय कारण और उत्तर उत्तर नय कार्य समझ लेना चाहिये इसप्रकार उचरोत्तर सूक्ष्मता और आपसमें कार्य कारणता रहनेसे नैगमके वाद संग्रह, संग्रहके बाद व्यवहार इत्यादि क्रम माना गया है। ये सभीनय पूर्व पूर्व महाविरुद्धविषयवाले है और उत्तरोत्तर अनुकूल विषयवाले हैं क्योंकि पहिले नयने जितने पदार्थको विषय कर रक्खा है उसको आगेका नय विषय नहीं करताइसलिये पहिला नय विरुद्ध महा विषयवाला है तथा आगेके नयका जो विषय है वह पहिलेके नयमें गर्भित है इसलिये हूँ है आगेका नय पहिले नयके अनुकूल अल्पविषयवाला है इसप्रकार पूर्व पूर्व महा विरुद्ध विषयवाले एवं है १ यहा पर यह दृष्टांत समझ लेना चाहिये कि किसी नगरमें पक्षा बोलता या उस बोलना सुन एकने कहा इस नगरमें पक्षी बोलता है। दूसरेने कहा इस नगरमें एक वृक्ष है उस पर पक्षी बोलता है। तीसरेने कहा वृत्तकी बडी डालो पर पक्षी बोलता है। चौथेने कहा छोटो डाली पर बैठ कर बोलता है। पांचवेने कहा डालीके एक देश पर बैठ कर बोलता है। छठेने कहा पक्षो अपने शरीरमें बोलता है । सातवेंने कहा वह अपने कंठमें बोलता है इत्यादि यहां पर जिस प्रकार पक्षीके बोलनेका स्थान पहिले बहुत बटा चतला कर पीछे क्रम क्रमसे अल्प बतलाया गया है उसी प्रकार पहिले नैगम नयका विषय बहुत बतलाया है। फिर क्रम क्रमसे अल्प बतलापा गया है इसलिये नैगम आदि नयों में उत्तरोत्तर समविषयता है। SARABIABADRISTRETISTESTOSTERRORRECes
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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