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________________ अध्याय बारा माषा १९१ RSASREALISAECALCASHASABALASAठन अथवा-आत्मशब्दका अर्थ स्वरूप भी है इसलिये जिस शब्दका अर्थ जिस स्वरूपसे हो उसका उसी रूपसे होनेका निश्चयकरना एवंभूतनयका विषय है। जिसतरह 'गच्छतीति गौ' जो गमन करै | उसका नाम गाय है यह गोशब्दका व्युत्पचिसिद्ध अर्थ है । यहाँपर जिसतरह जिस मनुष्यके हाथमैं | || दंड हो उसे ही दंडी कहना किंतु पूर्व और उत्तर कालमें उसके हाथमें दंड न रहनेसे दंडी न कहना है | उसीतरह जिससमय गाय गमन कर रही हो उसीसमय उसे गाय कहना और पूर्व और उत्तर कालमें || |जब कि वह खडी वा सो रही है उससमय गमन न करनेके कारण गाय न कहना एवंभूतनयका विषय ा है। इसी प्रकार और शब्दोंमें भी समझ लेना चाहिये। अथवा-आत्मशब्दका अर्थ ज्ञान है इसलिये आत्मा जिस क्षणमें जिस पदार्थके ज्ञानसे युक्त हो || || उसे वही कहना एवंभूतनयका विषय है। जिसतरह जिसक्षणमें आत्मा इंद्र पदार्थके ज्ञानसे परिणत हो रहा है उसे इंद्र कहदेना अथवा जिससमय अग्नि पदार्थके ज्ञानसे परिणत हो रहा है उसे अग्नि कह | देना यह एवंभूतनयका विषय है। यहांपर 'एवंभूयत इति' 'ऐसा होना' इस एवंभूतनयके अर्थकी प्रतीति | शब्दसे होती है इसलिये शब्द ही एवंभूतनय माना है कारणमें कार्यका उपचार है अर्थात एवंभूतनय के अर्थकी प्रतीतिमें कारण शब्द है और कार्य एवंभूतनय है । शंका ABOBOOSEBESALESESCARBASANACEAST .१। समभिरूद और एवंभूत नयके जो उदाहरण दिये गये हैं उन्हें बहुतसे लोग समान सरीखे जानकर यह शंका कर बैठते हैं कि इन दोनों नयोंमें क्या मेद है । इसलिये यहां उनका स्पष्टीकरण कर देते हैं व्युत्पत्तिसिद्ध अर्थ क्या है इस बातका कुछ भी विचार न कर प्रसिद्ध अर्थका जान लेना समभिरुढ नयका विषय है जिस तरह गोशब्दका व्युत्पत्तिसिद्ध अर्थ 'जो गमन करे उसका नाम गाय है' यह है इसका तो विचार न करना किंतु उसके वाणी पृथ्वी आदि
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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