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________________ AR परमतक.अनुसार आकाश आदि कार्य सर्वथा नित्य माने गये हैं इसलिये उनसे किसी भी कार्यकी उत्पत्ति नहीं मानी। परमाणु पदार्थको भी वादी नित्य मानता है इसलिए घटपट आदि पदार्थों की उससे उत्पचि नहीं हो सकती। यदि हठात् परमाणुओंसे घट पट आदि कार्योंकी उत्पत्ति मानी जायगी तो उन्हें नित्य न मानना होगा क्योंकि सर्वथा नित्य पदार्थ कार्यका उत्पादक नहीं हो सकता। तथा प्रतिनियत पृथिवी आदि परमाणुओंसे सर्वथा भिन्न घट आदि कार्योंकी उत्पत्ति होती है' यह वात भी युक्तिवाधित है । क्योंकि कारणसे सर्वथा भिन्न कार्यकी कभी भी उत्पचि नहीं हो सकती किंतु कारणसे कथंचित् भिन्न । ही कार्यकी उत्पचि होती है । यदि कारणसे सर्वथा भिन्न ही कार्य की उत्पत्ति मानी जायगी तो किसी किसी परमाणु के समूह रूप कारणमें सूक्ष्मता रहती है वही कार्यमें भी आती है इसलिये वहां पर 8 इंद्रियोंसे प्रत्यक्षता नहीं होती परंतु अब जबकि कारणसे कार्य सर्वथा भिन्न माना जायगा तब परमाणु हूँ के समूह रूप कारणमें जो सूक्ष्मता है वह तो कार्यमें आवेगी नहीं फिर उस कार्यकी इंद्रियोंसे प्रत्यक्षता है होनी चाहिये इसरीतिसे कार्माण जातिकी वर्गणाओंका नेत्रसे ज्ञान होना चाहिये । इसीतरह परमाणुः | ओंके समूह रूप कारणमें जो महत्त्व (स्थूलत्व ) है वह कार्य में आता है तब उसका इंद्रियोंसे. प्रत्यक्ष | होता है। अब जबकि कारणसे सर्वथा भिन्न कार्य है तब कारणका धर्म-महत्व, कार्यमें आवेगा नहीं है फिर परमाणु मोके समूहसे उत्पन्न होनेवाले घटादि कार्योंका प्रत्यक्ष न हो सकेगा।परंतु जहांपर कारणका | धर्म सूक्ष्मता कार्यमें रहता है वहांपर इंद्रियोंसे प्रत्यक्ष नहीं होता, एवं जहां कारणका धर्म-महत्व कार्यमें | रहता है वहां पर इंद्रियों से प्रत्यक्ष होता है यह बात वादीको इष्ट और अनुभव सिद्ध है इसलिये कारणसे | कार्य सर्वथा भिन्न ही होता है यह कहना चाषित है किंतु कथंचित् भिन्नता ही मानना युक्त है। . - BABEACTOBER ११५
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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