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________________ वरा० की अपेक्षासे हैं परंतु भूत और वर्तमान कालकी अपेक्षा भी समझ लेने चाहिये । जिसतरह "अद्य भाषा दीपोत्सवदिने श्रीवर्धमानस्वामी मोक्षं गतः" आज दिवालीके दिन श्रीवर्धमान भगवान मोक्ष पधारे। ५ यहां पर यद्यपि भगवानको मोक्ष गये हजारों वर्ष हो चुके परंतु संसारमें वैसा व्यवहार होता है इसलिये || नैगम नयकी अपेक्षा वैसा वचन बाधित नहीं किंतु नैगम नयकी अपेक्षा ठीक समझा जाता है । इसी ६|| तरह जो कार्य वर्तमानमें हाथमें करनेकेलिये ले लिया है उसे पूर्ण न होने पर भी पूर्ण कह देना यद्यपि | विरुद्ध जान पडता है तथापि संसारमें वैसा व्यवहार है इसलिये नैगम नयकी अपेक्षा वैसा कथन बाधित नहीं । इसलिये नैगम नयके भूत नैगम, भावी नेगम, और वर्तमान नैगम ये तीन भेद माने हैं। जो || विषय ऊपर नैगम नयका बताया है यदि वह वर्तमानमें पूर्णतया उपस्थित हो तो वह उसका (नेगम नयका) विषय नहीं हो सकता। शंका भाविसंज्ञाव्यवहार इति चेन्न भूतद्रव्यासन्निधानात ॥३॥ जो पदार्थ पहिले हो चुका उसको वर्तमानमें मानना भूत संज्ञा व्यवहार कहा जाता है। जो आगे || जाकर होनेवाला है उसे वर्तमानमें मानना भावी संज्ञाका व्यवहार है और वर्तमान कालका ही पदार्थ हूँ जो अभी पूरा नहीं हुआ है-हो रहा है उसको पूरा कहना वर्तमान संज्ञा व्यवहार है । नैगम नयके जितने भी ऊपर दृष्टांत दिये हैं वे सब भावी संज्ञा व्यवहार हैं क्योंकि प्रस्थ आदि आगे होनेवाले पदार्थों || को वर्तमानमें माना गया है इसलिये वे भावी संज्ञा व्यवहार हैं नैगमके विषय नहीं हो सकते ? सो ठीक Pा नहीं। जो पुरुष वर्तमानमें राजकुमार है वह आगे जाकर राजा होगा इसलिये वहॉपर भावि संज्ञा व्यव| हार होता है। जो वर्तमानमें कच्चे चावल हैं वे आगे जाकर भात कहे जाते हैं इसलिये वहां भाविसंज्ञा उन्नाSABREASTABASEASONSTS
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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