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अध्वान
आते हैं और न सत्व द्रव्यत्व आदि घाँसे भिन्न द्रव्य आदि पदार्थ देखनेमें आते हैं । इसलिये ये द्रव्य | 18 आदि पदार्थों से सत्त आदि धर्म सर्वथा भिन्न नहीं । और भी यह वात है किद : यदि सचाको द्रव्य आदिसे सर्वथा भिन्न मानोगे और सचाके संबंधसे उनमें 'सत सत्' यह प्रतीति || की और उनका 'सत्' यह नाम-माना जायगा तो वहांपर यह प्रश्न है कि द्रव्य आदि पदार्थोंमें जो सत् सत् ला यह प्रतात हवा उनका सत् यह नाम है वह सचा सबसे पाहल हकिपछि है। यदि यह कहा जायगात
कि वह सचा संबंधसे पहिले है तब जिसतरह जो पदार्थ स्वयं प्रकाशमान है उसका फिर प्रकाशन करना व्यर्थ है उसीतरह सचा संबंधसे पहिले ही द्रव्य आदि पदार्थों में 'सत्' 'सत्' यह प्रतीति और उनका सत् नाम प्रसिद्ध है तब उनके साथ सचाका संबंध मानना व्यर्थ है क्योंकि द्रव्य आदि पदार्थों में 'सत सत' प्रतीति और उनके 'सत्' नामकी प्रसिद्धिके लिये ही सत्ता संबंध की आवश्यकता पड़ती है । सो वह सचाके विना संबंधके ही हो जाता है इसलिये पीछे से सचाका संबंध मानना व्यर्थ है । तथा श्री यह भी बात है कि यदि सचा संबंधके पहिले ही द्रव्य आदिमें 'सत् सत्' यह प्रतीति और सत् नाम माना जायगा तो एक अंतरंग और दूसरी वाह्य सचा इस प्रकार सचाके दो भेद मानने पड़ेंगे क्योंकि यह वात निश्चित है कि विना सचाके रहे द्रव्य आदिमें 'सत, सत्' यह प्रतीति और उनका सत् नाम
नहीं कहा जा सकता।सचा संबंधके पहिले भी द्रव्य आदिमें सत् सत् यह प्रतीति और सत् नाम माना ७ गया है इसलिये जिसके द्वारा द्रव्य आदिमें 'सत् सत्' प्रतीति और उनका सत् नाम अनुभवमें आता |६|| है वह अंतरंग सचाका कार्य है अतः जिस सचाका पीछसे संबंध होनेवाला है उससे पाहिले ही 'सत् सत्'
इस प्रतीति और सत् इस नामकी नियामक:अंतरंग सचा माननी होगी एवं जिसका पीछेसे संबंध हुआ
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