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________________ अध्याय RSSRADABADARSHESARDARBOSSIS मूलकारणविप्रतिपत्तः॥४॥ बहुतसे वादियोंका घट और रूप आदिके मूल कारणों में विवाद है घट आदि पदार्थोंकी | उत्पत्तिके कारणोंकी वे भिन्न भिन्न रूपसे कल्पना करते हैं। उनमें सांख्यसिद्धांतकारोंका यह कहना है प्रकृतिसे महत्वत्त्वकी उत्पचि होती है । महत्वत्वसे अहंकारकी, उससे अहंकार रूप आदि पंच तन्मात्राओंकी, पंच तन्मात्राओंसे ग्यारह प्रकारके इंद्रियोंकी, इंद्रियोंसे पृथ्वी आदि महाभूतोंकी और || महाभूतोंसे मूपिंड आदिकी इत्यादि क्रमसे घट पट आदि विश्वरूप संसारकी उत्पचि होती है परंतु | उनका वैसा कहना ठीक नहीं क्योंकि सारूप सिद्धांतकारोंने प्रकृति पदार्थको अमूर्तिक निरवयव क्रिया| रहित अतींद्रिय अनंत और अपरप्रयोज्य-स्वाधीन माना है एवं घट पदार्थ मूर्तिक सावयव क्रियासहित | इंद्रियोंका विषय सांत आदि है । इसलिए प्रकृतिके स्वभावसे अत्यंत विलक्षण रहने के कारण घट, | प्रकृतिका कार्य नहीं हो सकता। क्योंकि अमूर्तिक आदि स्वभावके धारक कारणसे अत्यंत विलक्षण मूर्तिक स्वभाववाले कार्यकी कभी भी उत्पचि नहीं देखी गई । तथा जो पदार्थ किसी कार्यके करनेके | | लिए परसे प्रेरित रहता है वही अभिप्रायपूर्वक कार्योंको उत्पन्न कर सकता है किंतु जो परसे प्रेरित | 8 नहीं है वह बैसा नहीं कर सकता। प्रकृति पदार्थ किसी भी पर पदार्थ से प्रेरित होकर कार्य नहीं करता इसलिए अभिप्रायरहित होनेके कारण वह अभिप्राय पूर्वक घट पट आदि कार्योंकी उत्पचि नहीं कर | सकता इस रातिसे अमूर्तिक आदि विशेषण विशिष्ट प्रकृतिसे घट पट आदि कार्योंकी उत्पत्ति बाधित १-सर्शन रसना प्रादि बुद्धींद्रिय और पाणिपाद नादि कर्मेंद्रिय और मन मिलाकर ग्यारह इंद्रियां सांख्य मतमें मानी SABABABASAHABADRABBAERMA
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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