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________________ 1 है यदि यहां पर यह कहा जाय कि पुरुषक द्वारा प्रेरित हुई प्रकृति महत्तत्व आदि कार्यों के करने में समर्थ है इसलिए प्रकृति से घट पट आदि कार्योंकी उत्पत्ति हो सकती है कोई दोष नहीं ? सो भी अयुक्त है जो पदार्थ क्रियारहितनिष्क्रिय होता है वह अन्य पदार्थको प्रेरणा नहीं कर सकता । पुरुषको सांख्यमतमें निष्क्रिय माना गया है इसलिए महत्व आदि कार्योंकी सृष्टिकेलिए वह प्रकृतिको प्रेरणा नहीं कर सकता । यदि कदाचित् यह कहा जाय कि प्रकृति ही महत्त्व आदिकी सृष्टिकेलिए अपने को प्रेरणा करलेगी इसलिए प्रकृति से महत्तत्व घट पट आदिकी उत्पत्ति निर्बाध रूपसे हो सकती है कोई दोष नहीं । सो भी अयुक्त है। प्रकृति पदार्थको भी निष्क्रिय माना है इसलिए गमन करनेमें असमर्थ लंगडा पुरुष जिसप्रकार अपने को ही पकड़कर उठकर चलता हुआ नहीं देखा जाता उसीप्रकार स्वयं प्रेरणा आदि क्रियारहित प्रकृति स्वयं अपनेको महत्तत्व आदिकी सिद्धिकेलिए प्रेरणा नहीं कर सकती इसलिए प्रकृति से महल आदिकी सृष्टि बाधित है। और भी यह बात है कि विना प्रयोजन कोई भी किसी कार्य को नहीं करता यह संसार प्रसिद्ध बात है । प्रकृति पदार्थको महदादि पदार्थोंकी सृष्टिसे कोई प्रयोजन नहीं इसलिये उसके द्वारा महदादि सृष्टिका होना युक्तियुक्त नहीं कहा जा सकता । यदि यहां पर यह कहा जाय कि महदादि वा घट पट आदि सृष्टिका भोगनेवाला पुरुष है इसलिये पुरुषका भोगरूप. प्रयोजनका लक्ष्यकर प्रकृतिके द्वारा महदादि सृष्टिका होना निष्प्रयोजन नहीं । सो भी ठीक नहीं ? जो भी कार्य किया जाता है अपने प्रयोजन केलिये किया जाता है । पुरुषका भोगरूप प्रयोजन प्रकृतिका निज प्रयोजन नहीं इसलिये पुरुषके भोगरूप परप्रयोजन के लिए प्रकृति, महदादि सृष्टिका निर्माण नहीं कर सकती । तथा सृष्टिका भोग पुरुष करता है यह बात अध्याय ६ ४४३
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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