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________________ आदि ही पदार्थ हैं द्रव्य कोई जुदा पदार्थ नहीं। अनेक वादियोंका सिद्धांत है कि द्रव्य पदार्थ भिन्न है और रूप आदि पदार्थ भिन्न हैं । जो द्रव्य पदार्थको ही मानते हैं रूप आदिको स्वीकार नहीं करते उनके मत विपरीत रूप से ग्रहण इस प्रकार है- जिन वादियों का यह सिद्धांत है कि संसार में एकमात्र द्रव्य ही पदार्थ है रूप रस आदि कोई भी भिन्न पदार्थ नहीं उनके मत में द्रव्य पदार्थकी सिद्धि नहीं हो सकती, क्योंकि गुणवान पदार्थको द्रव्य माना है और वे गुण रूप आदिक हैं । यदि रूप आदि गुणोंका ही अभाव माना जायगा तब लक्षणगुणोंके अभाव से लक्ष्य द्रव्यकी सिद्धि न हो सकेगी । तथा द्रव्यमें रूप आदि गुणोंका सद्भाव माननेसे भिन्न भिन्न इंद्रियोंसे उस द्रव्यका भिन्न भिन्न रूप आदिके साथ सन्निकर्ष होता है किसी एक इंद्रिय से सब ओरसे द्रव्यका सन्निकर्ष नहीं होता अब वादीके मतानुसार रूप आदि कोई भी पदार्थ न होने से द्रव्यमें रूप आदि गुणों का सद्भाव तो माना नहीं जायगा तब जिस किसी इंद्रियसे द्रव्यका सन्निकर्ष होगा वह सब ओरसे होने लगेगा फिर एक ही इंद्रिय सकल रूपसे द्रव्यकी ग्राहक कहनी पडेगी । इतना ही नहीं जब एक ही इंद्रिय सकल रूपसे द्रव्यकी ग्राहक हो जायगी तब जुदीं जुदीं पांच इंद्रियां मानना व्यर्थ है क्योंकि जब रूप रस आदि जुदे जुदे पदार्थों का द्रव्यमें सद्भाव माना जाय तब तो जुदे जुदे रूपं रस आदिका ग्रहण करनेके लिए पांच प्रकारकी इंद्रियां मानी जांय किंतु वादी सिवाय द्रव्य के रूप आदि पदार्थोंको मानता नहीं इसलिए उसके मतानुसार एक ही इंद्रियसे द्रव्यका सर्वात्मना - सकल रूपसे ज्ञान हो जायगा पांच इंद्रियोंका मानना निरर्थक है। परंतु इंद्रियों के पांच भेद नहीं हैं वा एक ही इंद्रिय से सर्वात्मना द्रव्यका ज्ञान हो सकता है. यह बात देखी नहीं गई और विरुद्ध होनेसे इष्ट भी नहीं मध्याव १ ४३९
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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