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________________ PMS तराखामारपसाला 5555 र उष्णत्व (उष्णपना) धर्म है वह उष्णत्वरूप जो सामान्य (जाति) उसके संबंघसे है अर्थात् उष्ण गुण है । और उष्णत्व जाति है तथा गुण जाति और विशेष पदार्थ आपसमें जुदे जुदे हैं अर्थात् गुण पदार्थ है। जाति आदि स्वरूप नहीं हो सकता, जाति आदि पदार्थ गुणस्वरूप नहीं हो सकते इसलिये उष्णत्वके । संबंधसे उष्णगुणमें उष्णत्ववान यही प्रतीति हो सकेगी, उष्णगुण उष्ण है, यह नहीं। उसीप्रकार यद्यपि अग्नि का में उष्णगुणका संबंध है तो भी द्रव्य गुण आदि पदार्थ भिन्न भिन्न माने है इसलिये अग्नि और उष्ण-1|| IS गुण जब भिन्न भिन्न हैं तब अग्निमें उष्णवान् वा उष्णी यही प्रतीति होगी 'अग्नि उष्ण है यह प्रतीति । डा नहीं हो सकती। किंतु जब गुण जाति वा द्रव्य गुणका अभेद संबंध माना जायगा तब उष्णगुण और | उष्णत्व जाति इन दोनों में भेद न रहने पर उष्णगुण उष्णत्ववान है इसकी जगह 'उष्णगुण उष्ण है' ऐसा भी व्यवहार होगा तथा अग्नि द्रव्य और उष्णगुणमें अभेद रहने पर अग्नि उष्णवान् है' इसकी जगह भग्नि उष्ण है यह व्यवहार होगा। यह व्यवहार यथार्थ है इसलिये द्रव्य गुण आदिका कथंचित् अभेद | संबंध ही मानना ठीक है। यदि यहां कहा जाय कि ___समवायाभावादिति चेन्न प्रतिनियमाभावात् ॥ १५॥ जो पदार्थ आपसमें जुदे जुदे नहीं हो सकते उनका जो संबंध है वह समवाय है और यह यहां है' इसप्रकार ज्ञानवाक्य प्रवृत्ति एवं क्रियाप्रवृत्तिका हेतु रूप जो अभेदजनक संबंध विशेष है वही है। । समवाय है और उसीसे भिन्न भिन्न पदार्थोंका अभेद रूप व्यवहार होता है जिसतरह द्रव्यमें गुण, गुणमें है। गुणपना आदि ऐसी प्रतीतिका वह करनेवाला है । इस संबंध जो पदार्थ आपसमें अभिन्न जान पडते हैं जिस तरह आत्मा और ज्ञान आदि पदार्थ, उनका व्यवहार होता है इसलिये उष्णगुणमें GURUGRESSURESORNERALLOCACHERan BINDAN
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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