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________________ P १२ A৬ল৬* प्रमाण है उसका काल आवलि पृथक्त्व प्रमाण है । यहाँपर भी द्रव्य और भाव पहिलके समान हैं। जिस अवधिज्ञानका क्षेत्र एक कोश प्रमाण है उसके कालका प्रमाण कुछ अधिक एक उच्छ्वास है और द्रव्य भाव पहिलेके समान हैं। जिस अवधिज्ञानका क्षेत्र एक योजन प्रमाण है उसके कालका प्रमाण भिन्नमुहूर्त हैं। द्रव्य और भावका प्रमाण पहिलेके समान है। जिस अवधिज्ञानका क्षेत्र पच्चीस योजन प्रमाण है उसके कालका प्रमाण कुछ कम एक दिन है । द्रव्य और भावका प्रमाण पहिलेके समान है । जिस अवधिज्ञान के क्षेत्रका प्रमाण भरतक्षेत्र के बराबर है उसके कालका प्रमाण आधा मास है । द्रव्य और भावका प्रमाण पडिले समान है। जिस अवधिज्ञानके क्षेत्रका प्रमाण जम्बूद्वीप के बराबर है उसके काल । प्रमाण कुछ अधिक एक मास है । द्रव्य और भावका प्रमाण पहिलेके समान है । जिस अवधिज्ञान के क्षेत्रका प्रमाण मनुष्यलोकके समान है उसके कालका प्रमाण एक वर्ष है । द्रव्य और भावका प्रमाण पहिलेके समान है । जिस अवधिज्ञानके क्षेत्रका प्रमाण रुचक नामक तेरहवें द्वीप के अन्तके समान है। उसके कालका प्रमाण एक वर्ष पृथक्त्व है । द्रव्य और भावका प्रमाण पहिलेके समान है। जिस अवधिज्ञानके क्षेत्रका प्रमाण संख्याते द्वीप समुद्र है उस अवधिज्ञान के कालका प्रमाण संख्याते वर्ष है द्रव्य और भावका प्रमाण पहिले के समान है जिसका असंख्यातद्वीपसमुद्र क्षेत्र है उस अवधिका काल भी असंख्यात वर्ष प्रमाण है । द्रव्य भावका प्रमाण पहले के समान है । तियंच और मनुष्यों के अजघन्योत्कृष्ट देशावधिका प्रमाण प्रतिपादन कर दिया गया । तियंचोंके द्रव्य क्षेत्र आदिकी अपेक्षा उत्कृष्ट देशावधि का प्रमाण इसप्रकार है प्राचीन भाषाका पं० पत्रालालजी दूनीवालोंने " जघन्य तथा उत्कृष्ट तिवेग क्षेत्र संबंधी मनुष्वनिक देशा कयौ । ऐसा लिखा है ।" यह अर्थ असंगत है। क्योंकि पूर्वापर संबंध नहीं बैठता । ३१
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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