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________________ ०रा० भाषा RECORRECEMBECARECOREGAOBASAR प्रकर्णिकमें चार बार मस्तक नवाना, तीन बार नमस्कार करना, हर एक नमस्कारमें तीन तीन आवर्त || इसप्रकार बारह आवर्त करना आदि सामयिककी विधि बतलाई हैं। सातवें दशवैकालिक प्रकीर्णकमें || चंद्र सूर्यके ग्रहण आदिका वर्णन है । आठवें उचराध्ययन प्रकीर्णकमें महावीर भगवानके निर्वाण गमनका || कथन है। नवमें कल्पव्यवहार प्रकीर्णकमें तपस्वियोंके योग्य आचरणकी विधि बतलाई है और अयोग्य आचरणोंका प्रायश्चित्त निरूपण किया गया है । दशवें कल्प्याकल्प्य प्रकीर्णकमें विषय कषाय आदि हेय और वैराग्य आदि उपादेयका वर्णन है । ग्यारहवें महाकल्प्य प्रकीर्णकमें मुनियोंके लिए उचित द्रव्य से उचित क्षेत्र उचित काल सेवनका निरूपण है। बारहवें पुंडरीक प्रकीर्णकमें देवोंकी उत्पचिका निरूपण है। तेरहवें महापुंडरीकौ देवियोंकी उत्पचिका निरूपण है । और चौदहवें निषिद्धिको प्रकीर्णकमें प्रायः | श्चिच विधिका सविस्तर वर्णन है । शंका-जिसतरह मतिज्ञान आदिका जुदे जुदे रूपसे उल्लेख किया | गया है उस तरह अनुमान आदिका भी करना चाहिए ? उत्तर-- अनुमानादीनां पृथगनुपदेशः श्रुतावरोधात् ॥१५॥ ___अनुमान आदि ज्ञानोंका अंतर्भाव श्रुतज्ञानमें ही हो जाता है इसलिये उनका पृथक् रूपसे उल्लेख | नहीं किया गया और वह इसप्रकार है-अनुमान ज्ञान प्रत्यक्ष पूर्वक होता त और सामान्यतोदृष्ट ये तीन उसके भेद हैं । पहिलेके समान जहां पदार्थका ग्रहण हो वह पूर्ववत् अनुमान कहा जाता है जिसतरह-पहिले कई जगह किसी पुरुषने अग्निसे निकलता हुआ धूवां देखा उससे उसके || आत्मामें यह संस्कार जम गया कि विना अग्निके घूवां नहीं हो सकता इसीका नाम अविनाभाव संबंध ॥है.फिर जहां कहीं पर्वत आदिमें वह धूवां देखता है उससमय उसे अविनाभाव संबंषका स्मरण होता है BARBARAHARASHARABADAS
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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