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________________ अध्यार । 'खडा होकर पुरुष आग्निके पास पदार्थों को देख रहा है उस प्रदेशसे लेकर वीचके पदार्थ नहीं दीख ? पडते यदि चक्षु प्राप्यकारी ही है तो उससे बीचके पदार्थ भी दीख पडने चाहिये क्योंकि अग्निके पास , में रहनेवाले पदार्थों के पास वह एकदम कूदकर नहीं पहुंच सकता क्रम क्रमसे ही जायगा परन्तु बीचके 3 पदार्थ नहीं दीख पडते इसलिये चक्षु कभी प्राप्यकारी नहीं हो सकता--उसे अप्राप्यकारी ही मानना होगा। यदि यहांपर यह कहा जाय कि जहांपर अग्नि जल रही है वहांपर प्रकाश है इसलिये अग्निके है आसपासके पदार्थ चक्षुसे दीख पडते हैं किंतु बीचमें जो पदार्थ पडे हैं वहांपर प्रकाश नहीं है इसलिये वे नहीं दीख पडते । सो भी कहना ठीक नहीं। जो पदार्थ तैजस होता है उसे दूसरे प्रकाशकी सहायता की आवश्यकता नहीं होती। अग्नि तैजस पदार्थ है इसलिये जिस समय वह पदार्थों का प्रकाश करता है है उस समय उनके प्रकाश करनेमें वह दूसरे प्रकाशकी अपेक्षा नहीं रखता उसीप्रकार चक्षु भी तैजस ? पदार्थ है जिस समय उससे पदार्थ देखे जांय उस समय उसे भी दूसरे प्रकाशकी अपेक्षा नहीं करनी ६ चाहिये परन्तु बीचके पदार्थोके न देख सकनेके कारण यह मालूम पडता है कि चक्षुको प्रकाशकी अ-5 ६ पेक्षा रहती है इसलिये वह कभी तैजस नहीं कहा जा सकता। और भी यह वात है कि नासिका आदि इंद्रियां जिस समय अपने गंध आदि विषयोंको ग्रहण करती हैं उस समय हूँ अव्यवहित और जितना होता है उतना ही ग्रहण करती हैं किंतु यह वात नहीं कि किसी पदार्थ से ढके है हुए गंधको वे ग्रहण कर सकें वा जितना गंध आदि पदार्थ है उससे अधिक वा कम ग्रहण कर सकें। है यदि चक्षुको प्राप्यकारी माना जायगा तो जो पदार्थ कांच आदिके भीतर रक्खा है उसका चक्षुसे ग्रहण * न हो सकेगा क्योंकि चक्षुका संबंध कांच आदि सामने रक्खे हुए पदार्थके साथ ही है किंतु उसके भीतर -10-60-RESES SAIRAAAAAAALISASTRA
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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