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________________ भाषा व०स० NSSSSSSROSPERIASIS जीव अजीव आदि पदार्थोंको जाने और देखे वह ज्ञान और दर्शन है। आत्मा जीव अजीव आदि । | पदार्थोंको ज्ञान और दर्शनके ही द्वारा जान देख सकता है विना उनके नहीं इसलिये जानने और देख नेमें अत्यन्त साधक होनेसे ज्ञान और दर्शन करण है और करणमें युद् प्रत्यय करनेसे उनकी सिद्धि है। Fi हुई है। तथा भूवदिग्हम्यो णित्रश्चरेर्वृत्वं' अर्थात् आचरणार्थ चरधातुसे कमम णित्र प्रत्यय होता है। या इस.सूत्रसे चर.धातुसे णित्र प्रत्यय करनेपर चारित्र शब्दकी सिद्धि होती है और उसका यह अर्थ || होता है-चारित्र मोहनीय कर्मके उपशम, क्षय और क्षयोपशम होने पर जो आचरण किया जाय उसका || नाम चारित्र है यहां पर आत्माको चारित्रका आचरण करना ही सबसे अधिक इष्ट है इसलिये हा चारित्र कर्म है और कर्ममें णित्र प्रत्ययका विधान करनेसे चारित्र शब्द सिद्ध हुआ है । यदि यहांपर है| यह शंका की जाय कि कर्तृकरणयोरन्यत्वादन्यत्वमात्मज्ञानादीनां परश्वाद्विवंदिति चेन्न तत्परिणामादग्निवत् ॥५॥ जिसप्रकार देवदत्त फरसासे लकडी.काटता है यहां पर फरसा रूप करण और देवदच रूप का दोनों ही पदार्थ जुदे जुदे हैं उसीप्रकार आत्मा ज्ञानके द्वारा जीवादि पदार्थों को जानता है यहांपर। | आत्मा और ज्ञान भी जुदे जुदै पदार्थ खोकार करने पड़ेंगे क्योंकि आत्माको कर्ता औरज्ञानको करण | माना गया है सो ठीक नहीं जिसतरह द्रव्य क्षेत्र आदि वाह्य कारण और अंतरंग करणोंके द्वारा अग्निई कायिक नामकर्मके उदयसे जिस आत्माके उष्णपना प्रगट हो गया है उस उष्णता परिणामसे वह अग्नि कहा जाता है तथा एवंभूत नयकी अपेक्षा उष्णपर्याय और अग्निका अभेद है .उसी तरह.ज्ञान दर्शन है। आत्माके स्वभाव हैं, इसलिये एवंभूत नयकी अपेक्षा जिससमय आत्मा ज्ञानस्वरूप परिणत होता है | Au
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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