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भाषा
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व्यंजनस्यावग्रहः ॥ १८ ॥
Sairat अर्थ अव्यक्त है । जो शब्द आदि पदार्थ व्यक्त नहीं - अव्यक्त हैं उनका अवग्रह ज्ञान होता है। इस सूत्र का उल्लेख नियम करने के लिये है अर्थात् अव्यक्त पदार्थका केवल अवग्रह ज्ञान ही ' होता है ईहा अवाय आदिक नहीं होते । यदि यहांपर यह शंका की जाय कि अव्यक्त पदार्थका केवल अवग्रह ज्ञान ही होता है ईहा आदि ज्ञान नहीं होते यह नियम तो सूत्र में 'एव' शब्द जोडे विना नहीं हो सकता इसलिये 'व्यंजनस्यावग्रह एव' ऐसा सूत्र निर्माण करना चाहिये ? इसका समाधान वार्तिककार देते हैं
नवा सामर्थ्यादवधारणप्रतीतेरष्भक्षवत् ॥ १ ॥
संसार में ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं जो जलको न पीता हो किंतु सभी जलका पान करते हैं वहां पर किसी खास व्यक्ति के लिये जो केवल जलके आधारपर ही रहता हो, 'अन्भक्षः' शब्दका प्रयोग कर दिया जाय तो उसका अर्थ होता है कि यह जल पीता है ऐसे वचनके रहनेपर एवकारके विना भी asiपर जिसतरह यह नियम हो जाता है कि यह जल ही पीता है और कोई चीज नहीं खाता पीता यदि और भी वस्तु खाता पीता हो तो यह जल पीता है यह प्रयोग व्यर्थ है क्योंकि जल तो सभी पीते
इसलिये वह प्रयोग नियम करता है कि वह जलमात्र पीता है । उसीप्रकार व्यक्त अव्यक्त सभी पदार्थों के जब अवग्रह आदि सिद्ध हैं तब अव्यक्तके अवग्रह होता है यहांपर एव शब्द के बिना भी यही नियम मानना पडता है कि अव्यक्त पदार्थका अवग्रह ही होता है ईहा अवाय आदि नहीं होते । यदि यह नियम न माना जायगा तो फिर 'व्यंजनस्यावग्रहः' यह सूत्र ही व्यर्थ है क्योंकि व्यक्तः अव्यक्त
अध्याद
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