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भाषा
है क्योंकि वहाँपर अत्यंत सूक्ष्म जिनको हम देख ही नहीं सकते. ऐसे गुड आदि द्रव्योंके अवयवोंके साथ ता. चिउंटी आदि जीवोंकी नाक और जिह्वा इंद्रियोंका आपसमें स्वाभाविक संयोग संबंध रहता है उसमें अध्याय
संबंधमें किसी भी अन्य पदार्थकी अपेक्षा नहीं रहती इसलिए सूक्ष्म अवयवोंके साथ संबंध रहनेसे वे ३२१ मा प्राप्त होकर ही पदार्थको ग्रहण करती हैं उसी प्रकार अनि:सृत और अनुक्त पदार्थों के अवग्रह आदिमें
| भी अनिसृत और अनुक्त पदार्थोंके सूक्ष्म अवयवोंके साथ श्रोत्र आदि इंद्रियोंका अपनी उत्पचिमें पर पदार्थकी अपेक्षा न रखनेवाला स्वाभाविक संयोग संबंध है इसलिए अनिःसृत और अनुक्त स्थलों पर भी प्राप्त हो कर इंद्रियां पदार्थों का ज्ञान कराती ही हैं, अप्राप्त होकर नहीं । और भी यह बात है कि
- अस्मदादीनां तदभाव इति चेन्न श्रुतापेक्षत्वात् ॥१८॥ है। यदि यह कहा जायगा कि अनिःसृत और अनुक्त पदार्थों के साथ श्रोत्र आदि इंद्रियोंका' संयोग ह होता है यह हम देख नहीं सकते इसलिए हम उस संयोगको स्वीकार नहीं कर सकते ? सो, भी ठीक या नहीं। जिसतरह जन्मसे ही जमीनके भीतर पाला गया पुरुष जब बाहर किसी कारणसे आता है तो || उसको घटपट आदि समस्त पदार्थोंका आभास होता है परंतु यह घट है और यह पट है इत्यादि जो विशेष ! श्रा ज्ञान उसे होता है वह परके उपदेशसे ही होता है । वह स्वयं वैसा ज्ञान नहीं कर सकता उसी प्रकार || है अनिःसृत और अनुक्त पदार्थों के सूक्ष्म अवयवोंके साथ जो इंद्रियोंका भिडाव होता है और उससे अव
ग्रह आदि ज्ञान होते हैं यह विशेष ज्ञान भी परके उपदेशसे ही जाना जाता है हमारे अंदर यह सामर्थ्य है नहीं कि हम स्वयं जान सकें इसलिए परोपदेशके द्वारा जब अनिःसृत और अनुक्त पदार्थोंके अवग्रह |
आदि सिद्ध हैं तब उनका कभी अभाव नहीं कहा जा सकता । तथा
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