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तरा०
अध्याय
भाषा
BHOSDISESSISTABASSIS
ध्रुवं यथार्थग्रहणात ॥ १३ ॥ ___ जो पदार्थ जिसरूपसे स्थित है उसका बहुतकालतक उसीरूपसे ज्ञान होतारहता है यह वात प्रतिपादन करनेके लिये सूत्रमें ध्रुव शब्दका ग्रहण है।
सेतरग्रहणाद्विपर्ययावरोधः॥१४॥ बहु बहुविध आदि पदार्थोंसे विपरीत अल्प अल्पप्रकार चिर निःसृत उक्त और अध्रुव पदार्थों के ग्रहण करनेकेलिये सूत्रमें सेतर शब्दका ग्रहण है अर्थात् जिसतरह बहु आदि पदार्थोके अवग्रह आदि ज्ञान होते हैं उसीतरह अल्प अल्पप्रकार आदि पदार्थों के भी अवग्रह आदि ज्ञान होते हैं।
अवग्रहादिसंबंधात कर्मनिर्देशः॥१५॥ 'बहुबहुविधक्षिप्रानिःसृतानुक्तधुवाणां' यहां पर कर्ममें षष्ठीका निर्देश है और वह अवग्रह आदि | है की अपेक्षा है इसलिये षष्ठी विभक्तिके आधीन तो बहु आदिके अवग्रह आदि ज्ञान होते हैं यह अर्थ है । परंतु अवग्रह आदि ज्ञान, बहु आदि पदार्थों को विषय करते हैं यह सूत्रका खुलासा अर्थ है।
वहादीनामादौ वचनं विशुद्धिप्रकर्षयोगात ॥१६॥
तेच प्रत्येकर्मिद्रियानिद्रियेषु द्वादशविकल्पा नेयाः ॥१७॥ यद्यपि बहु आदिमें यह शंका हो सकती है कि जब बहु बहुविधके समान अल्प अल्पविध आदि र ॥ पदार्थों के भी अवग्रह आदि होते हैं तब अल्प अल्पविध आदिका साक्षात उल्लेखकर सेतर शब्दसे बहु बहुविध आदिका क्यों ग्रहण नहीं किया गया ? उसका समाधान यह है कि बहु आदिके जो अवग्रह आदि होते हैं उनमें ज्ञानावरणकर्मकी क्षयोपशमरूप विशुद्धिकी अधिक विशेषता है अल्प आदिके होनेवाले
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