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________________ अध्याय REKHAREGAS प्रगट हो चुका परन्तु उसके कितने भेद हैं? अभी तक यह वात नहीं कही गई इसालये सूत्रकार अब मतिज्ञानके भेदोंका वर्णन करते हैं अवग्रहहावायधारणाः॥१५॥ अवग्रह ईहा अवाय और धारणा ये चार भेद मतिज्ञानके हैं। विषयविषयीसन्निपातसमनंतरमाद्यग्रहणमवग्रहः॥१॥ जिस पदार्थको जाना जाता है वह विषय है और जिसके द्वारा जाना जाता है वह विषयी कहा जाता है । इंद्रियोंके द्वारा पदार्थ जाने जाते हैं इसलिये यहां विषयी शब्दसे इंद्रियोंका ग्रहण है और विषयका अर्थ घट पट आदि हैं। जिस समय पदार्थ और इंद्रियोंका आपसमें संबंध होता है उस समय पदार्थका दर्शन होता है और उसके बाद जो पदार्थका ग्रहण होता है वह ज्ञान कहा जाता है उस ज्ञान का नाम अवग्रह है । अर्थात् विशेषज्ञानशून्य जो पदार्थोंका इंद्रियों द्वारा सामान्य अवलोकन होता है उसे सचा कहते हैं। जिस समय इंद्रियां पदार्थज्ञानकी ओर झुकती हैं उस समय पदार्थों के ज्ञानमें कारणभूत योग्य संबंधके होनेपर ज्ञानमें 'कुछ है ऐसा सामान्य बोध होता है वह दर्शन कहा जाता है। उसके बाद यह पदार्थ 'पुरुष है' इसप्रकार अवांतर जातिविशिष्ट वस्तुका ग्रहण होता है वह ज्ञान कहा जाता है है उसी ज्ञानका नाम अवग्रह है। । अवगृहीतेऽर्थे तद्विशेषाकांक्षणमीहा ॥२॥ जिस पदार्थको अवग्रह ज्ञानने विषय कर लिया है उस पदार्थक भाषा उम्र और रूप आदिके द्वारा १ जातिसे प्रयोजन धर्मका है, वस्तुके धमको छोडकर जो कि वस्तस्वरूप ही है और कोई स्वतंत्र जावि या सचा पदार्थ नहीं है। ASSADORECHSS*
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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