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भाषा
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फिर लौटनारूप कार्य का ग्रहण होता है वहां पर पर्यायशब्द लक्षण माना जाता है यहवात निश्चित है तब जाकर लौटनारूप कार्यका ग्रहण उष्ण के समान मति आदिकमें भी होता है इसलिए उष्णपर्याय जिसतरह अग्निका लक्षण है उस तरह मति आदि पर्याय भी बिना किसी बाधा के मतिज्ञानके लक्षण हैं । वास्तवमें 'जाकर लौटना रूप कार्य' गुण गुणी और पर्याय पर्यायी में ही हो सकता है अन्यत्र नहीं । गुण और पर्याय पदार्थके लक्षण माने गए हैं इसलिए मति आदि पर्यायोंको मतिज्ञानका लक्षण मानना कभी आपतिजनक नहीं हो सकता । और भी यह बात है कि
पर्यायद्वैविध्यादग्निवत् ॥ ११ ॥
प्रत्येक पदार्थ के दो प्रकारके पर्याय माने गए हैं एक आत्मभूत जो उस पदार्थसे कभी जुदे नहीं हो सकते तत्स्वरूपही रहते हैं दूसरे अनात्मभूत जो वाह्यनिमित्तसे उत्पन्न होते हैं और उस बाह्य निमित्च की जुदाई हो | जानेपर पदार्थसे जुदे होजाते हैं उनमें जो आत्मभूत पर्याय हैं वेही लक्षण होते हैं अनात्मभूत नहीं आग्ने पदार्थ में भी आत्मभूत और अनात्मभूत दोनों प्रकारके पर्याय मौजूद हैं उनमें आत्मभूतपर्याय अग्निका उष्णपना है क्योंकि किसी भी हालत में वह अग्निसे जुदा नहीं होसकता इसलिए वही लक्षण है। तथा अनात्मभूत लक्षण अग्निका घूआं है क्योंकि वह अपनी उत्पत्ति में ईंधन आदि वाह्य कारणों की अपेक्षा रखता है । वे कारण रहते हैं तबतक उसका अग्नि के साथ संबंध रहता है और कारणों की जुदाई हो जाने पर अग्नि से जुदा होजाता है इसलिए सदा अग्निमें न रहने से घूम पर्याय अग्निका लक्षण नहीं कहा जासकता । इसरीतिसे जिसतरह आत्मभूत होनेसे उष्ण पर्याय अग्निका लक्षण कहाजाता है घूम पर्याय नहीं क्योंकि वह सदा अग्निमें न रहनेकेकारण अनात्मभूत है उसीतरह मतिज्ञानके भी आत्मभूत और अ
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