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है ज्ञानके लक्षण हैं “यदि मति आदिको मतिज्ञानका लक्षण न माना जायगा तो मतिज्ञानका अभाव ही
हो जायगा क्योंकि मति आदि पर्यायस्वरूप लक्षणके सिवाय मतिज्ञानका अन्य कोई लक्षण नहीं" इसलिये मति आदि पर्यायोंको मतिज्ञानका लक्षण मानना ही पडेगा इसरीतिसे पर्याय शब्दको लक्षण ६ मानना युक्तिसंगत है । तथा इसरूपसे पर्याय शब्द लक्षण है
। 'गत्वा प्रत्यागतलक्षणग्रहणात ॥९॥ अग्न्युष्णवत् ॥१०॥ ___ जहाँपर जाकर फिर लौटनारूप कार्य जान पडे वह भी लक्षण कहा जाता है यथा-यह पदार्थ 5 है अग्नि है ऐसा जानकर चिचमें यह प्रश्न उठता है कि यह कौन अग्नि है ? फिर वहीं समाधान होजाता|
है जो उष्ण है वह यह अग्नि है इसलिए यहाँपर अग्नि ऐसा जानकर बुद्धि उष्ण पर्यायकी ओर झुकती |
है तथा उष्ण ऐसा जानकर यह प्रश्न होता है कि यह कौन उष्ण है ? फिर वहीं समाधान होजाता है कि 15 जो अग्नि है वह उष्ण है इसलिए यहांपर 'उष्ण' ऐसा जानकर बुद्धि पीछे लौटकर फिर अग्निकी ओर 5 झुकती है इसरीतिसे यहाँपर जाकर फिर लौटनारूप कार्यके ग्रहण होनेसे जिसप्रकार उष्ण पर्याय अग्नि
का लक्षण माना जाता है उसीप्रकार यह मति है' ऐसा जाननेके बाद यह प्रश्न उठता है कि यह कौन हूँ मति है फिर वहीं समाधान होजाता है कि 'जो स्मृति है वह यह मति है' इसलिए यहांपर 'मति' ऐसा 18/ से जानकर बुद्धि स्मृति रूप पर्यायकी ओर झुकती है तथा यह स्मृति है ऐसा जानकर. यह प्रश्न होता है | II कि यह कौन स्मृति है ? फिर उसीसमय समाधान होजाता है कि जो मति है वह स्मृति है इसलिए | । यहांपर स्मृति ऐसा जानकर बुद्धि फिर पीछे लौटकर स्मृतिकी ओर झुकती है इसलिए यहांपर जाकर २८८ ॐ फिर लौटनारूप कार्यके ग्रहण होनेसे मति आदि भीमतिज्ञानके लक्षण होसकते हैं इसरीतिसे जहांपर जाकर
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