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BISHNASABAR BROTE
है किंतु यह वात नहीं कि मतिम मतिज्ञानावरण कर्मका क्षयोपशम कारण हो और स्मृति आदिमें अन्य किसी कर्मका क्षयोपशम कारण होअतःमति आदिशब्द एकही अर्थके कहनेवाले हैं यदि यह कहा जाय कि
मननं मतिः जिससमय यह भावसाधन व्युत्पत्ति की जायगी उससमय मतिका अर्थ मानना होगा और | जिस समय 'मन्यते इति मतिः' यह कर्मसाधन व्युत्पचि की जायगी उससमय जिसके द्वारा माना जाय ६ वह मति है यह अर्थ होगा इसीतरह स्मृति शब्दकी भावसाधन व्युत्पत्ति करने पर याद करना' यह है उसका अर्थ होगा और कर्मसाधन माननेपर जिसके द्वारा याद किया जाय यह अर्थ होगा, इत्यादि । PI रूपसे जब मति आदिका अर्थ भिन्न भिन्न है तब मति अदि एकार्थवाचक नहीं माने जा सकते ?
सो ठीक नहीं। 'गच्छतीति गौः जो गमन करे वह गाय है, इस व्युत्पचिसे गौ शब्दका, गमन करना अर्थ सिद्ध होता है तो भी व्युत्पचि बलसे होनेवाले गमन अर्थको छोडकर रूढिबलसे उसका गाय अर्थ ।। लिया जाता है उसीप्रकार मति स्मृति आदि शब्दोंका व्युत्पचिसिद्ध अर्थ जुदा जुदा है तो भी रूढिसे वे || का एक ही अर्थके वाचक है-मतिज्ञानके ही पर्यायांतर हैं भिन्न नहीं । यदि यहांपर यह शंका की जाय कि
शब्दभेदादर्थभेदो गवाश्वादिवदिति चेन्नातः संशयात् ॥३॥ इंद्रादिवत् ॥ ४॥ जिसप्रकार गाय घोडा आदि शब्द भिन्न भिन्न हैं इसलिये उनका अर्थ भी भिन्न भिन्न है एक अर्थ नहीं माना जाता उसी प्रकार मति स्मृति आदि शब्द भी आपसमें भिन्न भिन्न हैं उनका भी एक । अर्थ नहीं मानना चाहिये किंतु गाय घोडा आदि शब्दोंके समान भिन्न भिन्न अर्थ ही मानना उचित है |
इसतरह मति आदि शब्दोंके भेदसे जब उनका भिन्न भिन्न ही अर्थ युक्तिसे सिद्ध होता है तब उन्हें
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