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भध्याय
तम्रा भाषा
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| सकता? सो भी अयुक्त है। जिसतरह 'सिंहो माणवक' यह बालक सिंह है इत्यदि स्थानों पर पशुओंका ६ राजा, पंचेंद्रिय, नख, दाढ, सटा, दीप्तिमान किंतु पीले नेत्र आदि अवयवोंका धारक सिंह नामका मुख्य का रूपसे पदार्थ संसारमें मोजूद है इसलिये उसीके समान बालकमें क्रूरता शूरता आदिगुणोंको देखकर यह कह हे दिया जाता है कि यह बालक सिंह है किंतु विनाअसली सिंहके गौणरूपसे वालकमें सिंहकी कल्पना नहीं |
हो सकतीउसीतरह मुख्यरूपसे प्रमाणके रहतेही आधिगमरूप फलको गौणरूपसे प्रमाण माना जाता है विना का असली प्रमाणके नहीं बौद्ध मतमें असली प्रमाण सिद्ध नहीं किंतु अधिगमको गौण रूपसे प्रमाण मानने | || के लिये चेष्टा की है इसलिये अधिगमरूप फलको गौण रूपसे प्रमाण नहीं माना जा सकता। इसरीति | BI से बौद्ध मतमें माने गये प्रमाणका कोई फल सिद्ध नहीं होता इसलिये फलरहित होनेसे वह प्रमाण नहीं) || कहा जा सकता। यदि यहांपर यह कहा जाय कि
आकारभेदात्त द इति चेन्नैकांतवादत्यागात् ॥१५॥ ग्राहक, विषय-घट पट आदिका झलकना और संवित्ति-जानना, ये तीन शक्तियां हम ज्ञानमें | मानते हैं उनके भेदसे प्रमाण प्रमेय और फलका भेद हो जायगा अर्थात् ज्ञानमें जो ग्राहक शक्ति है उस | PI से प्रमाण, विषयाभास शक्तिसे प्रमेय और संविचिसे फलकी कल्पना हो जायगी, प्रमाण भी फलवान |
सिद्ध हो जायगा कोई दोष नहीं ? सो भी कहना अयुक्त है । बौद्धोंने एकांतसे ज्ञानको निर्विकल्पक 18|| माना है और निर्विकल्पको कोई भी आकार प्रतीत हो नहीं सकता। यदि ज्ञानको ग्राहक, विषयाभास || |
और संविचिरूप तीन शक्तियोंके आकारस्वरूप माना जायगा तो ज्ञानको सर्वथा निर्विकल्पकरूप जो २७७ ॥ एकांतसे माना है वह एकांत छोड देना पडेगा क्योंकि एक पदार्थ अनेक आकारस्वरूप है यह अनेकां
*SAKACCASIKACTERISONESIAN SASARALSARASTRA
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