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अध्याय
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मनोऽर्थसन्निकर्षाद्यनिष्पद्यते तदन्यत" । अर्थात् आत्मा इंद्रिय मन और पदार्थों के सन्निकर्षसे है
उत्पन्न होता है वह प्रत्यक्ष है। यहां पर भी प्रत्यक्षकी उत्पत्ति में इंद्रियोंकी अपेक्षा रक्खी है । सांख्य है है सिद्धांतकारोंका यह कहना है कि-"श्रौत्रादिवृत्ति प्रत्यक्षं” श्रोत्र आदि इंद्रियोंका जो व्यापार है वह है प्रत्यक्ष है अर्थात् इंद्रियां पदार्थको देखती हैं। उनके देखे हुए पर मन विचार करता है। मनसे विचारे
हुएको अहंकार मानता है। अहंकार तत्व द्वारा माने हुए पदार्थको बुद्धि निश्चय करती है और बुद्धि 9 द्वारा निश्चित पदार्थको पुरुष बिचारता है इस रूपले कान आदि इंद्रियोंके व्यापारका नाम ही प्रत्यक्ष
है (श्लोकवार्तिक पृ० १८७ कारिका ३६।) इसरीतिसे सांख्य सिद्धांत में भी प्रत्यक्षकी उत्पचिमें इंद्रियों हूँ ₹ की अपेक्षा की गयी है। मीमांसकमतके अन्यतम प्रवर्तक जैमिनिका कहना है कि- "सत्संप्रयोगे पुरुष- हैं है स्येंद्रियाणां बुद्धिजन्म तत्प्रत्यक्षमिति” अर्थात् पदार्थके साथ इंद्रियोंका संबंध होने पर जो पुरुषमें बुद्धि है है की उत्पचि होना है वह प्रत्यक्ष है इसप्रकार मीमांसकमतमें भी इंद्रियोंके आधीन ही प्रत्यक्षकी उत्पति ।
मानी है इस रूपसे जब प्रत्येक सिद्धांतकार प्रत्यक्षकी उत्पचिमें इंद्रियोंको कारण मानता है-इंद्रियोंकी , अपेक्षा बिना कीए प्रत्यक्षकी उत्पत्ति ही असंभव मानता है तब जो ज्ञान इंद्रियोंके व्यापारसे उत्पन्न हो ।
वह प्रत्यक्ष और जिसकी उत्पचिमें इंद्रियोंके व्यापारको अपेक्षा न हो वह परोक्ष है यही प्रत्यक्ष और ई परोक्षका लक्षण मानना ठीक है ? सो नहीं। यदि इंद्रियजन्य ज्ञानको प्रत्यक्षमाना जायगा तो सर्वज्ञके हू ज्ञानमें तो इंद्रियोंका व्यापार कारण पडता नहीं इसलिये सर्वज्ञका ज्ञान ही प्रत्यक्ष ज्ञानन कहा जा सकेगा ? इसलिये प्रत्यक्ष ज्ञानमें कभी इंद्रियां कारण नहीं पड सकतीं। सर्वज्ञके ज्ञानमें इंद्रियोंकी कारणता मानने
१ यह सांख्यमतके वार्षगग्य प्राचार्यका बनाया हुमा सूत्र है। २ जैमिनि सूत्र १ अ०१पा०४ सू।
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