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________________ BREFRESEASE CHECHESTRALICHEDCREATERESCHECRECOLOGENERABARIES) वर्ण अकार है। वा 'ऋषभादयः तीर्थकरा' ऋषभको आदि लेकर तीर्थकर हैं-तीर्थकरों में सबसे पहिले अध्याद ऋषभ हैं। यहांपर आदि शब्दका अर्थ 'पहिला' है।' जगादयः परिहर्तव्या' सर्प आदि समस्त हिंसक जीवोंसे बचना चाहिये । यहॉपर आदि शब्दका अर्थ 'आदि' ही है । सर्वादि सर्वनाम' सर्व आदि शब्द, सर्वनाम संज्ञक कहे जाते हैं। यहांपर आदि शब्दका अर्थ व्यवस्था है क्योंकि सर्व आदि शब्दोंको सर्व नामकी व्यवस्था की गई है। 'नद्यादीनि क्षेत्राणि' नदीके समीप क्षेत्र हैं। यहांपर आदि शब्दका अर्थ समीप है। टिदादिरिति टित् आदि प्रत्य य, यहांपर आदि शब्दका अर्थ अवयव है क्योंकि जिन प्रत्ययों हूँ के 'ट' का लोप हो जाता है वे टित् कहे जाते हैं परन्तु यहाँपर आदि शब्दका अर्थ 'पहिला' ही है विवक्षित है इसलिये यहांपर आदि शब्दका 'पहिला' ही अर्थ लिखा गया है। जो आदिमें होनेवाला है हो वह आद्य कहा जाता है और वे आदिमें होनेवाले मतिज्ञान और श्रुतज्ञान हैं अर्थात् आदिके मति. ज्ञान और श्रुतज्ञान दोनों ज्ञान परोक्ष हैं। श्रुतागृहणमप्रथमत्वात् ॥ २॥ उत्तरापेक्षयादित्वमिति चेन्नातिप्रसंगात् ॥३॥ द्वित्वनिर्देशादिति चेन्नातिप्रसंगात् ॥ ४॥ न वा प्रत्यासत्तेः श्रुतगृहणं ॥५॥ 'मतिश्रुतावाधमनःपर्ययकेवलानि ज्ञानं' इस सूत्रमें सबसे पहिले मतिज्ञानका पाठ रक्खा है श्रुत- टू ज्ञानका नहीं इसलिये 'आधे परोक्षं' इस सूत्रों आदि शब्दसे मतिज्ञानका ही ग्रहण किया जासकता है है क्योंकि सूत्रमें सबसे पहिले उसीको पढा गया है किंतु श्रुतज्ञान सबसे पहिले नही पढा गया इसलिये 2 उसका ग्रहण नहीं हो सकता फिर आदि शब्दसे मतिज्ञान और श्रुतज्ञान दोनोंका ग्रहण करना अयुक्त रु २५६ है। यदि यहाँपर यह कहा जाय कि श्रुतके वाद जो अवधि आदिका पाठ रक्खा है उनसे तो श्रुतज्ञान SAMBHASTRIHIRNSANE
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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