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পতল
SRIJA
इहापि तत एवेति चेन्नाविशेषात् ॥ २२ ॥
पलंग अचेतन है इसलिये पलंग और पुरुषके संयोग होनेपर उस संयोगसे होनेवाले सुखको पुरुष भोग सकता है अचेतन पलंग नहीं । उसीप्रकार आत्मा मन इंद्रिय और पदार्थके संयोगको जो सन्निकर्ष माना है उसमें संयोगसे होनेवाले सुखको आत्मा ही भोग सकता है इंद्रिय आदि अचेतन नहीं ? सो भी ठीक नहीं । परमतमें ज्ञान और आत्माका सर्वथा भेद माना गया है इसलिये सामान्य रूपसे जिस तरह ज्ञान से भिन्न होने के कारण इंद्रिय आदि पदार्थ अचेतन हैं उसी तरह आत्मा भी अचेतन है इस रीति से जब आत्मा इंद्रिय आदिमें कोई विशेष नहीं - सामान्य रूपसे सभी अचेतन हैं तव पदार्थों का ज्ञानरूप सन्निकर्षके फलको चेतन आत्मा ही भोगता है अचेतन इंद्रिय आदि नहीं भोग सकते यह भेद नहीं कहा जा सकता इसलिये सन्निकर्षको प्रमाण नहीं माना जा सकता । यदि पदार्थोंका जाननारूप सन्निकर्ष के फलका भोक्ता आत्मा ही है इंद्रिय आदि नहीं । इस वातकी सिद्धि के लिये आत्माको ज्ञानस्वरूप माना जायगा तो प्रतिज्ञाभंग दोष होगा क्योंकि परमत में ज्ञान गुण और आत्मा गुणका आपस में सर्वथा भेद सम्बन्ध माना है यदि उसे ज्ञानस्वरूप माना जायगा तो अभेद सिद्ध होगा सर्वथा भेदकी प्रतिज्ञा नष्ट हो जायगी। यदि यहांपर भी यह समाधान दिया जाय कि
समवायादिति चेन्नाविशेषात् ॥ २३ ॥
जिस सम्बंध से पदार्थ आपसमें अलग २ न हो सकें वह समवाय संबंध माना है । उस समवाय संबंध पदार्थों का जानना आत्मा के ही हो सकता है इंद्रिय आदिके नहीं इसलिये पदार्थोंका जानना - रूप सन्निकर्षका फल जब आत्मा के सिवाय इंद्रिय आदिमें नहीं हो सकता तब सन्निकर्षको प्रमाण मानने
अध्याय
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