SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 239
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मावा || मौजूद है उसी समय होनेवाले मन और इंद्रियां करण हो सकते हैं कोई दोष नहीं ? सो भी अयुक्त है। 1 क्योंकि जिस मनुष्यके सींग उत्पन्न होते हैं वे एक साथ होते हैं वहांपर यह बात नहीं कि दोनों सींग एक साथ उत्पन्न हुए हैं इसलिये दाहिनी ओरके सींगका बांही ओरका सींग करण माना जाय । इस. है। लिये यह वात सिद्ध हो चुकी कि जो पुरुष आत्माको न मानकर ज्ञान ही पदार्थ माननेवाला है और । उसे क्षण विनाशीक मानता है उसका माना हुआ ज्ञान करणके व्यापारको अपेक्षा विना किये का नहीं है। IPL कहा जा सकता। और भी यह वात है कि बौद्ध लोग प्रकृतिका जो अर्थ है उससे भिन्न कोई पदार्थ नहीं मानते । ज्ञान शब्दकी प्रकृति ज्ञा || धातु है क्योंकि ज्ञा धातुसे युट् प्रत्यय करनेपर ज्ञान शब्दकी सिद्धि होती है तथा उस ज्ञा धातुका अर्थ 15 जानना मात्र है उससे भिन्न आत्मा पदार्थ है नहीं जिसे कर्ता माना जाय इसलिये प्रकृतिका अर्थ ज्ञानः | || कर्ता नहीं हो सकता। और भी यह वात है कि । यदि ज्ञानको कर्ता मान भी लिया जाय तो ज्ञान सिवाय एक क्षणके दूसरे क्षणमें नहीं रह सकता। M और उसमें रहनेवाला कर्तापन भी सिवाय एक क्षणके दूसरे क्षणमें नहीं रह सकता इस रीतिसे जब || ज्ञानमें रहनेवाला कर्तृत्वधर्म क्षणविनाशीक है तब जिसका उच्चारण अनेक क्षणों में हो सकता है ऐसे ||P || कर्ता शब्दसे वह नहीं कहा जा सकता । यदि कदाचित कर्तृत्वको कहनेवाले कर्ता शब्दको भी क्षण18|| विनाशीक मान लेवे सो भी ठीक नहीं। कर्तृशब्द कर्तृत्व अर्थको अनेक क्षण ठहर कर ही कह सकता है किंतु एक क्षण ठहर कर वह कर्तृत्व अर्थको कभी नहीं कह सकता । यदि यहाँपर यह कहा जाय कि | हम ज्ञानकी संतान मान लेंगे। संतानी पदार्थ अनेक क्षणस्थायी होगा और वह कर्ता कहा जा सकेगा BABASEASEASCALCUSTORISERIER कि २२१
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy