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________________ ४.अथवा . . .. - all के स्वामी जीव और कर्म दोनों हैं क्योंकि द्रव्य और भावके भेदसे निर्जरा दो प्रकारको है उनमें भाव रा || निर्जरा आत्मामें और द्रव्य निर्जरा कर्मकी होती है । निर्जराका कारण तप अथवा यथाकाल कर्मोंका || १९७६ पाक है। निर्जरा आत्मा होती है इसलिये निर्जराका आधिकरण आत्मा है अथवा प्रत्येक पदार्थ अपना है अधिकरण आप ही होता है इसलिये निर्जराका अधिकरण निर्जरा भी है। निर्जराकी जघन्य स्थिति में एक समय और उत्कृष्ट स्थिति अंतर्मुहूर्त है । यहाँपर निर्जराकी स्थिति ध्यानकी अपेक्षा समझनी चाहिये || अर्थात् ध्यानके बलसे समस्त कर्मोंकी निर्जराका जघन्य तो एक,समय और उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त समय है || इस रीतिसे वह स्थिति सादि सांत है सामान्यरूपसे निर्जरातत्व, एक है । विशेषरूपसे उसके सविपाका और अविपाकके दो भेद हैं अथवा ज्ञानावरण आदि मूल प्रकृति आठ हैं इसलिये मूल प्रकृतियोंकी 15 अपेक्षा उसके आठ भी भेद हैं। इसी तरह आत्मा और कर्मकी अपेक्षा उसके संख्याते असंख्याते और अनंत भेद हैं। * ज्ञानावरण आदि समस्त कर्मोंका सर्वथा नाश होना मोक्ष है अथवा मोक्षका नाम मोक्षकी || स्थापना आदि भी मोक्ष है यह मोक्षका निर्देश है। मोक्षका स्वामी परमात्मा है अथवा मोक्षका स्वामी । स्वयं मोक्ष है । सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र मोक्षके कारण हैं । जो पदार्थ स्वामीसंबंधक | योग्य होता है वह अधिकरण कहा जाता है मोक्षका स्वामी परमात्मा है इसलिये वही उसका अधिकरण मोक्षकी स्थिति सादि अनंत है। सामान्यरूपसे मोक्ष एक ही प्रकारका है और विशेष रूपसे उसके | ६द्रव्य मोक्ष और भाव मोक्ष ये दो भेद हैं। जो पदार्थ जिस रूपसे स्थित है उनका उसी रूपसे श्रदान करना सम्यग्दर्शन है अथवा सम्य RECEREMEGERMANENERASAWARENT
SR No.010551
Book TitleTattvartha raj Varttikalankara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages1259
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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