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भाषा
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मोक्षोपदेशः पुरुषार्थप्रधानत्वादिति चेन्न जिज्ञासमानार्थप्रश्नापोक्षप्रतिवचनसद्भावात् ॥ ४॥ ६ अर्थ-धर्म अर्थ काम और मोक्षके भेदसे पुरुषार्थ चार हैं। चारो पुरुषार्थोंमें मोक्ष पुरुषार्थ ही प्रधान है द एवं जीवोंको अनुपम और अत्यन्त कल्याणकारी है इसलिये मोक्षका उपाय न वतलाकर पहले उसका है स्वरूप ही बतलाना चाहिये ? सो नही ! पूछनेवाला जैसा पूछेगा वैसा ही उत्तर दिया जायगा। यहांपर
। पूछनेवालेने 'मोक्षका उपाय क्या है ?' यही पूछा है उसका स्वरूप नहीं पूछा है इसलिये मोक्षका उपाय PI वतलाना ही ठीक है । फिर भी यदि यह शंका हो कि
मोक्षमेव कस्मन्नामाक्षीदिति चेन्न कार्यावशेषसंप्रतिपत्तेः ॥५॥ | अर्थ-जब समस्त पुरुषार्थों में मोक्ष ही मुख्य पुरुषार्थ है तब पूछनेवालेने मोक्षका स्वरूप ही क्यों नहीं ॥ पूछा, मार्ग ही उसने क्यों पूछा ? सो भी ठीक नहीं ! क्योंकि यह नियम है कि जब किसीसे कोई कुछ है। पूछना चाहता है तब खास मतलबसे पूछता है । सांख्य मीमांसक वेदांती आदि सव ही वादी प्रायः | मोक्षपदार्थ स्वीकार करते हैं परन्तु उसके उपायके वतलानेमें सवका मत जुदा जुदा है । कोई मोक्षका | कोई उपाय मानता है और किसीको कोई उपाय इष्ट है इसलिये पूछनेवालेको मोक्षपदार्थमें किसी प्रकाभरका संदेह न हो सकनेके कारण उसके उपायमें ही यह संदेह हुआ कि मोक्षका वास्तविक उपाय क्या ॥ॐा है इसीलिये उसने मोक्षका वास्तविक उपाय ही पूछना प्रयोजनीय समझा उसका स्वरूप नहीं। और 18 भी यह वात है कि
कारणं तुंप्रति विप्रतिपत्तिः पाटलिपुत्रमार्गविप्रतिपत्तिवत् ॥६॥ जो मनुष्य पटना शहरको जानेवाले हैं उन्हें उसके होनेमें कोई विवाद नहीं, सभी लोग पटना
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