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माना जायगा तो उस अनेकांत में भी विधि निषेध की कल्पना करनेपर फिर विधिपक्ष की अपेक्षा एकांत मानना पड़ेगा यदि उसे भी अनेकांत ही मानाजायगा तो फिर भी उसमें विधिनिषेधकी कल्पना करनपर विधि पक्ष में एकांत मानना पड़ेगा इत्यादि रूपसे कहीं भी जाकर व्यवस्था न होगी इसलिये अनेकांत पदार्थ में विधि निषेधकी कल्पना नहीं हो सकती, अनेकांत पदार्थ तो सर्वथा अनेकांत स्वरूप ही मानना होगा इस रीति से हरएक पदार्थकी सप्तभंगी चलती है यह सामान्य नियम बाधित होगा क्योंकि अनेकांत पदार्थकी सप्तभंगी उपर्युक्त रीतिसे नहीं चलाई जा सकती ? सो ठीक नहीं | अनेकांत पदार्थ में सातों भंग माने हैं जिस तरह -- तत्व कथंचित् एकधर्म स्वरूप है १ कथंचित् अनेक धर्मस्वरूप है २ । कथंचित् एकधर्म स्वरूप भी कथंचित् अनेक धर्मस्वरूप भी है ३ । कथंचित् अवक्तव्य है ४ । कथंचित् एक धर्मस्वरूप भी है और अवक्तव्य भी है ५ । कथंचित् अनेक धर्मस्वरूप भी है और अवक्तव्य भी है ६ । कथंचित् एक धर्मस्वरूप भी है कथंचित् अनेक धर्म स्वरूप भी है और कथंचित् अवक्तव्य भी है ७ । यदि यहांपर यह शंका की जाय कि कथंचित् एकांत है यह विधिपक्ष में माना हुआ एकांत कैसे निर्दोष माना जा सकता है ? तो वार्तिककारने उसका यह समाधान दिया हैप्रमाणनयार्पणाभेदात् ॥ ७ ॥
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प्रमाण और नयकी भिन्नरूपसे विवक्षा करनेपर कथंचित् एकांत के मानने में कोई दोष नहीं हो सकता। वह इसप्रकार है- एकांत दो प्रकारका है, एक सम्यगेकांत दूसरा मिथ्यैकांत | अनेकांत भी दो प्रकारका है एक सम्यगनेकांत दुसरा मिथ्यानेकांत । उनमें स्वरूप पररूप आदि विशेष २ कारणोंकी अपेक्षा रखकर जो प्रमाणके द्वारा कहे गए पदार्थ के एक देशको कहनेवाला है अर्थात् प्रमाणज्ञान