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प्रमाणनयैराधिगमः॥ ६॥ "प्रमाणे च नयाश्च प्रमाणनयाः, तैः प्रमाणनयैः” यह यहांपर समास है प्रमाण और नोंके द्वारा है , सम्यग्दर्शन आदि वा जीव आदि पदार्थों का ज्ञान होता है । प्रमाण पदार्थ क्या है और नय पदार्थ क्या
है ? यह आगे विस्तारपूर्वक कहा जायगा। शंका-जिस शब्दमें थोडे अक्षर होते हैं उसका पहिले प्रयोग किया जाता है । यह व्याकरणका सिद्धांत है। प्रमाण और नय इन दोनों शब्दोंमें नय शब्दमें थोडे , अक्षर हैं और प्रमाणमें अधिक हैं इसलिये प्रमाणसे पहिले नयका प्रयोग उपयुक्त होनेपर 'नयप्रमाणेरधिगमः' ऐसा सूत्र कहना चाहिये ? सो ठीक नहीं।
अभ्यर्हितत्वात्प्रमाणशब्दस्य पूर्वनिपातः॥१॥' ___ 'अभ्यर्हितं पूर्व निपतति' अर्थात् जो पूज्य होता है उसका ही पहिले प्रयोग होता है यह भी है उसका वाधक व्याकरणका नियम मोजूद है नयकी अपेक्षा प्रमाण पूज्य है इसलिये उसीका पहिले प्रयोग रहना उपयुक्त है । प्रमाण क्यों पूज्य है ? यह बतलाते हैं
प्रमाणप्रकाशितेष्वर्थेषु नयप्रवृत्तेर्व्यवहारहेतुत्वादभ्यर्हः॥२॥ ' जो पदार्थ प्रमाणके विषय हैं उन्हींमें व्यवहारके कारण नयोंकी प्रवृचि है किंतु जो प्रमाणके विषय नहीं उनमें नयोंकी प्रवृत्ति नहीं हो सकती इसरीतिसे जब प्रमाणके विषयभूत पदार्थों को ही नय विषय करते हैं तब प्रमाण ही पूज्य है। अथवा
समुदायावयवविषयत्वाहा ॥३॥ 'सकलादेशः प्रमाणधीनो विकलादेशो नयाधीन इति' अर्थात् समस्त पदार्थोंको विषय करनेवाला
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