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स्थापना और द्रव्य किसी पर्यायविशेषको विषय न कर सामान्यको विषय करनेवाले हैं इसलिये ये तीन निक्षेप तो द्रव्यार्थिक नयके विषय हैं और भाव निक्षेप पर्याय प्रधान है - वर्तमान पर्यायका ग्रहण कर - नेवाला है इसलिये वह पर्यायार्थिक नयका विषय है इसरीतिसे द्रव्यार्थिक नयकी अपेक्षा नाम आदि तीन मुख्य और भाव गौण, तथा पर्यायार्थिक नयकी अपेक्षा भाव मुख्य और नामादि गौण इसतरह अपने अपने नयकी अपेक्षा प्रधानता और दूसरे दूसरे नयकी अपेक्षा अप्रधानता होनेसे सभी निक्षेप प्रधान और अप्रधान हैं तब गौण और मुख्यमें मुख्य प्रधान होनेसे उसीका ग्रहण होगा यह बात नहीं कही जा सकती क्योंकि नयोंकी अपेक्षा सभी निक्षेप गौण और मुख्य हैं । तथा - कृत्रिम और अकृत्रिम कृत्रिम मुख्य है इसलिये उसीका ग्रहण है यह भी नहीं कहा जा सकता क्योंकि नयाँकी अपेक्षा एक मुख्य ही हो वा एक गौण ही हो यह बात नहीं, सभी निक्षेप मुख्य भी हो जाते हैं और गौण भी हो जाते हैं इसलिये यह जो कहा गया था कि भाव निक्षेपसे होनेवाला व्यवहार मुख्य व्यवहार है और नाम आदिसे होनेवाला व्यवहार उपचारसे व्यवहार है वह युक्तिवाधित हो चुका । यदि यह शंका की जाय कि
द्रव्यार्थिकपर्यायार्थिकांतर्भावान्नामादीनां तयोश्च नयशब्दाभिधेयत्वात्पौनरुक्त्यप्रसंगः ॥ ३३ ॥
न वा विनेयमतिभेदाधीनत्वाद् द्व्यादिनयविकल्पनिरूपणस्य ॥ ३४ ॥
नाम स्थापना और द्रव्य इन तीन निक्षेपोंको द्रव्यार्थिक नयका विषय बतलाया है और भाव निक्षेपको पर्यायार्थिक नयका विषय बतलाया है तथा आगे जाकर जहां नयोंके भेद प्रभेदों का वर्णन 'किया जायगा वहाँ इनका विषय भी वर्णन किया गया है इसरीति से जब नाम आदिका समावेश नयों में